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NCERT Solutions for Class 12 Chapter 7 Hindi Core – काव्य भाग – बादल राग

NCERT Solutions for Class 12 Chapter 7 Hindi Core – काव्य भाग – बादल राग

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NCERT Solutions for Class 12 Chapter 7

कवि परिचय

जीवन परिचय- महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 में बंगाल राज्य के महिषादल नामक रियासत के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी मूलत: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे। जब निराला तीन वर्ष के थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया। इन्होंने स्कूली शिक्षा अधिक नहीं प्राप्त की, परंतु स्वाध्याय द्वारा इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद ये रियासत की पुलिस में भर्ती हो गए। 14 वर्ष की आयु में इनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ। इन्हें एक पुत्री व एक पुत्र प्राप्त हुआ। 1918 में पत्नी के देहांत का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा। आर्थिक संकटों, संघर्षों व जीवन की यथार्थ अनुभूतियों ने निराला जी के जीवन की दिशा ही मोड़ दी। ये रामकृष्ण मिशन, अद्वैत आश्रम, बैलूर मठ चले गए। वहाँ इन्होंने दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तथा आश्रम के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन किया।
सन 1935 में इनकी पुत्री सरोज का निधन हो गया। इसके बाद ये टूट गए तथा इनका शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो गया। 15 अक्तूबर, 1961 ई० को इस महान साहित्यकार ने प्रयाग में सदा के लिए आँखें मूंद लीं।
साहित्यिक रचनाएँ- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ प्रतिभा-संपन्न व प्रखर साहित्यकार थे। इन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई।
इनकी रचनाएँ हैं-

(i) काव्य- संग्रह-परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना आदि।
(ii) उपन्यास- अलका, अप्सरा, प्रभावती, निरुपमा, काले कारनामे आदि।
(iii) कहानी- संग्रह-लिली, सखी, चतुरी चमार, अपने घर।
(iv) निबंध- प्रबंध-पद्य, प्रबंध प्रतिभा, चाबुक आदि।
(v) नाटक- समाज, शंकुतला, उषा–अनिरुद्ध।
(vi) अनुवाद- आनंद मठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी।
(vii) रेखाचित्र- कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिहा।
(viii) संपादन-‘समन्वय’ पत्र तथा ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन।

काव्यगत विशेषताएँ- निराला जी छायावाद के आधार स्तंभ थे। इनके काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद तथा प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएँ मिलती हैं। ये एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़े हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों की प्रेरणा के स्रोत भी हैं। इनका यह विस्तृत काव्य-संसार अपने भीतर संघर्ष और जीवन, क्रांति और निर्माण, ओज और माधुर्य, आशा-निराशा के द्वंद्व को कुछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका यह निर्बध और उदात्त काव्य-व्यक्तित्व कविता और जीवन में फ़र्क नहीं रखता। वे आपस में घुले-मिले हैं। उनकी कविता उल्लास-शोक, राग-विराग, उत्थान-पतन, अंधकार-प्रकाश का सजीव कोलाज है। भाषा-शैली-निराला जी ने अपने काव्य में तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। बँगला भाषा के प्रभाव के कारण इनकी भाषा में संगीतात्मकता और गेयता का गुण पाया जाता है। प्रगतिवाद की भाषा सरल, सहज तथा बोधगम्य है। इनकी भाषा में उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी के शब्द इस तरह प्रयुक्त हुए हैं मानो हिंदी के ही हों।

कविता का प्रतिपादय एवं सार

प्रतिपादय- ‘ बादल राग ‘ कविता ‘अनामिका’ काव्य से ली गई है। निराला को वर्षा ऋतु अधिक आकृष्ट करती है, क्योंकि बादल के भीतर सृजन और ध्वंस की ताकत एक साथ समाहित है। बादल किसान के लिए उल्लास और निर्माण का अग्रदूत है तो मजदूर के संदर्भ में क्रांति और बदलाव। ‘बादल राग’ निराला जी की प्रसिद्ध कविता है। वे बादलों को क्रांतिदूत मानते हैं। बादल शोषित वर्ग के हितैषी हैं, जिन्हें देखकर पूँजीपति वर्ग भयभीत होता है। बादलों की क्रांति का लाभ दबे-कुचले लोगों को मिलता है, इसलिए किसान और उसके खेतों में बड़े-छोटे पौधे बादलों को हाथ हिला-हिलाकर बुलाते हैं। वास्तव में समाज में क्रांति की आवश्यकता है, जिससे आर्थिक विषमता मिटे। कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है।
सार- कवि बादलों को देखकर कल्पना करता है कि बादल हवारूपी समुद्र में तैरते हुए क्षणिक सुखों पर दुख की छाया हैं जो संसार या धरती की जलती हुई छाती पर मानी छाया करके उसे शांति प्रदान करने के लिए आए हैं। बाढ़ की विनाश-लीला रूपी युद्ध-भूमि में वे नौका के समान लगते हैं। बादल की गर्जना को सुनकर धरती के अंदर सोए हुए बीज या अंकुर नए जीवन की आशा से अपना सिर ऊँचा उठाकर देखने लगते हैं। उनमें भी धरती से बाहर आने की आशा जागती है। बादलों की भयंकर गर्जना से संसार हृदय थाम लेता है। आकाश में तैरते बादल ऐसे लगते हैं मानो वज्रपात से सैकड़ों वीर धराशायी हो गए हों और उनके शरीर क्षत-विक्षत हैं।
कवि कहता है कि छोटे व हलके पौधे हिल-डुलकर हाथ हिलाते हुए बादलों को बुलाते प्रतीत होते हैं। कवि बादलों को क्रांति-दूत की संज्ञा देता है। बादलों का गर्जन किसानों व मजदूरों को नवनिर्माण की प्रेरणा देता है। क्रांति से सदा आम आदमी को ही फ़ायदा होता है। बादल आतंक के भवन जैसे हैं जो कीचड़ पर कहर बरसाते हैं। बुराईरूपी कीचड़ के सफ़ाए के लिए बादल प्रलयकारी होते हैं। छोटे-से तालाब में उगने वाले कमल सदैव उसके पानी को स्वच्छ व निर्मल बनाते हैं। आम व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न व सुखी रहते हैं। अमीर अत्यधिक संपत्ति इकट्ठी करके भी असंतुष्ट रहते हैं और अपनी प्रियतमाओं से लिपटने के बावजूद क्रांति की आशंका से काँपते हैं। कवि कहता है कि कमजोर शरीर वाले कृषक बादलों को अधीर होकर बुलाते हैं क्योंकि पूँजीपति वर्ग ने उनका अत्यधिक शोषण किया है। वे सिर्फ़ जिदा हैं। बादल ही क्रांति करके शोषण को समाप्त कर सकता है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

1.

तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जगके दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,

धन्, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में  पृथ्वी के, आशावों से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
तक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादलJ (पृष्ठ-41)
[CBSE Sample Paper-II, 2007, (Outside) 2008, 2009, (Delhi) 2012]

शब्दार्थ- तिरती-तैरती। समीर-सागर-वायुरूपी समुद्र। अस्थिर- क्षणिक, चंचल। दग्ध-जला हुआ। निर्दय- बेदर्द। विलव- विनाश। प्लावित- बाढ़ से ग्रस्त। रण-तरी- युद्ध की नौका। माया- खेल। आकांक्षा-कामना। भेरी- नगाड़ा। सजग- जागरूक। सुप्त- सोया हुआ। अंकुर- बीज से निकला नन्हा पौधा। उर- हृदय। ताकना- अपेक्षा से एकटक देखना।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसमें कवि ने बादल को विप्लव व क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया है।
व्याख्या- कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे क्रांतिदूत रूपी बादल! तुम आकाश में ऐसे मैंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर कोई नौका तैर रही हो। यह उसी प्रकार है जैसे अस्थिर सुख पर दुख की छाया मैंडराती रहती है। सुख हवा के समान चंचल है तथा अस्थायी है। बादल संसार के जले हुए हृदय पर निर्दयी प्रलयरूपी माया के रूप में हमेशा स्थित रहते हैं। बादलों की युद्धरूपी नौका में आम आदमी की इच्छाएँ भरी हुई रहती हैं। कवि कहता है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात कमजोर व निष्क्रिय व्यक्ति भी संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं। हे विप्लव के बादल! ये अंकुर नए जीवन की आशा में सिर उठाकर तुझे ताक रहे हैं अर्थात शोषितों के मन में भी अपने उद्धार की आशाएँ फूट पड़ती हैं।
विशेष-

(i) बादल को क्रांतिदूत के रूप में चित्रित किया गया है।
(ii) प्रगतिवादी विचारधारा का प्रभाव है।
(iii) तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
(iv) काव्य की रचना मुक्त छंद में है।
(v) ‘समीर-सागर’, ‘दुख की छाया’ आदि में रूपक, ‘सजग सुप्त’ में अनुप्रास तथा काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है।
(vi) वीर रस का प्रयोग है।

प्रश्न

(क) कवि किसका आहवान करता हैं? क्यों?
(ख) ‘यह तेरी रण-तरी  भरी आकांक्षाओं से ‘  का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया-पंक्ति का अर्थ बताइए।
(घ) पृथ्वी में सोए हुए अंकुरों पर किसका क्या प्रभाव पड़ता हैं?

उत्तर-

(क) कवि बादल का आहवान करता है क्योंकि वह उसे क्रांति का प्रतीक मानता है। बादल बरसने से आम जनता को राहत मिलती है तथा बिजली गिरने से विशिष्ट वर्ग खत्म होता है।
(ख) इस पंक्ति का आशय यह है कि जिस प्रकार युद्ध के लिए प्रयोग की जाने वाली नाव विभिन्न हथियारों से सज्जित होती है उसी प्रकार बादलों की युद्धरूपी नाव में जन-साधारण की इच्छाएँ या मनोवांछित वस्तुएँ भरी हैं जो बादलों के बरसने से पूरी होंगी।
(ग) इस पंक्ति का अर्थ यह है कि जिस प्रकार वायु अस्थिर है, बादल स्थायी है, उसी प्रकार मानव-जीवन में सुख अस्थिर होते हैं तथा दुख स्थायी होते हैं।
(घ) पृथ्वी में सोए हुए अंकुरों पर बादलों की गर्जना का प्रभाव पड़ता है। गर्जना सुनकर वे नया जीवन पाने की आशा से सिर ऊँचा करके प्रसन्न होने लगते हैं।

2.

फिर-फिर
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-fवक्षतं हतं अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पद्र्धा धीर। [CBSE (Outside), 2009]

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल ,
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। (पृष्ठ-41) 
[CBSE (Delhi), 2010]

शब्दार्थ- वर्षण-बारिश। मूसलधार-जोरों की बारिश। हृदय थामना- भयभीत होना। घोर- भयंकर। वज्र- हुंकार-वज्रपात के समान भयंकर आवाज़। अशनि-पात- बिजली गिरना। शापित- शाप से ग्रस्त। उन्नत- बड़ा। शत-शत-सैकड़ो। विक्षप्त- घायल। हत- मरे हुए। अचल- पर्वत। गगन- स्पर्शी- आकाश को छूने वाला। स्पद्र्धा –धीर-आगे बढ़ने की होड़ करने हेतु बेचैनी। लघुभार- हलके। शस्य- हरियाली। अपार- बहुत। रव- शोर।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2′ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसमें कवि ने बादल को विप्लव व क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि हे क्रांतिकारी बादल! तुम बार-बार गर्जन करते हो तथा मूसलाधार बारिश करते हो। तुम्हारी वज्र के समान भयंकर आवाज को सुनकर संसार अपना हृदय थाम लेता है अर्थात भयभीत हो जाता है। बिजली गिरने से आकाश की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा रखने वाले ऊँचे पर्वत भी उसी प्रकार घायल हो जाते हैं जैसे रणक्षेत्र में वज़ के प्रहार से बड़े-बड़े वीर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, बड़े लोग या पूँजीपति ही क्रांति से प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, छोटे पौधे हँसते हैं। वे उस विनाश से जीवन प्राप्त करते हैं। वे अपार हरियाली से प्रसन्न होकर हाथ हिलाकर तुझे बुलाते हैं। विनाश के शोर से सदा छोटे प्राणियों को ही लाभ मिलता है। दूसरे शब्दों में, क्रांति से निम्न व दलित वर्ग को अपने अधिकार मिलते हैं।
विशेष-

(i) कवि ने बादल को क्रांति और विद्रोह का प्रतीक माना है।
(ii) कवि का प्रगतिवादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
(iii) प्रतीकात्मकता का समावेश है।
(iv) प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
(v) बार-बार, सुन-सुन, हिल-हिल, शत-शत, खिल-खिल में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा ‘हाथ हिलाने’ में अनुप्रास अलंकार है।
(vi) ‘हृदय थामना’, ‘हाथ हिलाना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
(vii) तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
(viii) वीर रस है।
(ix) मुक्तक छंद है।

प्रश्न

(क) संसार के भयभीत होने का क्या कारण हैं?
(ख) क्रांति की गर्जना पर कौन है ?
(ग) 
गगन-स्पर्शी  स्पद्र्धा -धीर- कौन है ?
(घ) लघुभार, शस्य अपार किनके प्रतीक हैं। वे बादलों का स्वागत किस प्रकार करते हैं?

उत्तर-

(क) बादल भयंकर मूसलाधार बारिश करते हैं तथा वज्र के समान कठोर गर्जना करते हैं। इस भीषण गर्जना को सुनकर प्रलय की आशंका से संसार भयभीत हो जाता है।
(ख) क्रांति की गर्जना से निम्न वर्ग के लोग हँसते हैं क्योंकि इस क्रांति से उन्हें कोई नुकसान नहीं होता, अपितु उनका शोषण समाप्त हो जाता है। उन्हें उनका खोया अधिकार मिल जाता है।
(ग) गगन-स्पर्शी स्पद्र्धा धीर वे पूँजीपति लोग हैं जो अत्यधिक धन कमाना चाहते हैं। वे संसार के अमीरों में अपना नाम दर्ज कराने के लिए होड़ लगाए रहते हैं।
(घ) लघुभार वाले छोटे-छोटे पौधे किसान-मजदूर वर्ग के प्रतीक हैं। वे झूम-झूमकर खुश होते हैं तथा हाथ हिला-हिलाकर बादलों का स्वागत करते हैं।

3.

अट्टालिका नहीं है रे
आंतक–भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लवन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलजं से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
[Imp.]
 [CBSE Sample Paper, 2008; (Outside), 2011]

रुद्ध कोष हैं, क्षुब्ध तोष 
अंगना-अगा सो लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल 
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।  (पृष्ठ-42-43)  [CBSE (Delhi) 2009, 2010, 2011]

शब्दार्थअट्टालिकाअटारी, महल। आतंक भवन-भय का निवास। यक- कीचड़। प्लावन- बाढ़। क्षुद्र- तुच्छ। प्रफुल- खिला हुआ, प्रसन्न। जलज-कमल। नीर- पानी। शोक-दुख। शैशव- बचपन। सुकुमार- कोमल। रुदध- रुका हुआ। कोष- खजाना। क्षुब्ध- कुद्ध। तोष- शांति। अंगना- पत्नी। अंग-शरीर। अक- गोद। वज्र-गर्जन-वज्र के समान गर्जन। त्रस्त- भयभीत।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसमें कवि ने बादल को विप्लव व क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। ये सदैव गरीबों का शोषण करते हैं। वर्षा से जो बाढ़ आती है, वह सदा कीचड़ से भरी धरती को ही डुबोती है। भयंकर जल-प्लावन सदैव कीचड़ पर ही होता है। यही जल जब कमल की पंखुड़ियों पर पड़ता है तो वह अधिक प्रसन्न हो उठता है। प्रलय से पूँजीपति वर्ग ही प्रभावित होता है। निम्न वर्ग में बच्चे कोमल शरीर के होते हैं तथा रोग व कष्ट की दशा में भी सदैव मुस्कराते रहते हैं। वे क्रांति होने में भी प्रसन्न रहते हैं। पूँजीपतियों ने आर्थिक साधनों पर कब्जा कर रखा है। उनकी धन इकट्ठा करने की इच्छा अभी भी नहीं भरी है। इतना धन होने पर भी उन्हें शांति नहीं है। वे अपनी प्रियाओं से लिपटे हुए हैं फिर भी बादलों की गर्जना सुनकर काँप रहे हैं। वे क्रांति की गर्जन सुनकर भय से अपनी आँखें बँद किए हुए हैं तथा मुँह को छिपाए हुए हैं।
विशेष-

(i) कवि ने पूँजीपतियों के विलासी जीवन पर कटाक्ष किया है।
(ii) प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग है।
(iii) तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
(iv) पंक पर, अंगना-अंग, आतंक अंक में अनुप्रास अलंकार है।
(v) मुक्तक छंद है।

प्रश्न

(क) ‘पक’ और ‘अट्टालिका’ किसके प्रतीक हैं?
(ख) 
शैशव का सुकुमार शरीर किसमें हँसता रहता हैं?
(ग) 
धनिक वर्ण के लोग किससे भयभीत हैं? वे भयभीत होने पर क्या कर रहे हैं?
(घ) कवि ने भय को कैसे वर्णित किया है?

उत्तर-

(क) ‘पंक’ आम आदमी का प्रतीक है तथा ‘अट्टालिका’ शोषक पूँजीपतियों का प्रतीक है।
(ख) शैशव का सुकुमार शरीर रोग व शोक में भी हँसता रहता है। दूसरे शब्दों में, निम्न वर्ग कष्ट में भी प्रसन्न रहता है।
(ग) फूलोगक्रांतसे भावी हैं। वे अपान पिलयों कागदमें लोहुएहैं तथा भायसेअन ऑों व मुँ को ढँक रहे हैं।
(घ) कवि ने बादलों की गर्जना से धनिकों की सुखी जिंदगी में खलल दिखाया है। वे सुख के क्षणों में भी भय से काँप रहे हैं। इस प्रकार भय का चित्रण सटीक व सजीव है।

4.

रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अग से लिपट भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल 
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,

तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया हैं उसका सार,
धनी, वज़-गजन से बादल।
ऐ जीवन के पारावार! (पृष्ठ-43) [CBSE (Delhi), 2010, 2011]

शब्दार्थ-जीर्ण-पुरानी, शिथिल। बहु- भुजा। शीण-कमजोर। कृषक- किसान। अधीर- व्याकुल। विप्लव- विनाश। सार- प्राण। हाड़- मात्र-केवल हड्डयों का ढाँचा। यारावार- समुद्र।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसमें कवि ने बादल को विप्लव व क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया है।
व्याख्या- कवि कहता है कि हे विप्लव के वीर! शोषण के कारण किसान की बाँहें शक्तिहीन हो गई हैं, उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह शोषण को खत्म करने के लिए अधीर होकर तुझे बुला रहा है। शोषकों ने उसकी जीवन-शक्ति छीन ली है, उसका सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। हे जीवन-दाता! तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो। क्रांति करके शोषण को समाप्त करो।
विशेष-

(i) कवि ने किसान की दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया है।
(ii) विद्रोह की भावना का वर्णन किया है।
(iii) ‘शीर्ण शरीर’ में अनुप्रास अलंकार है तथा काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है।
(iv) तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
(v) मुक्तक छंद है।
(vi) संबोधन शैली का भी प्रयोग है।
(vii) चित्रात्मक शैली है।

प्रश्न

(क) ‘विप्लव के वीर!” किसे कहा गया हैं? उसका आहवान क्यों किया जा रहा हैं?
(ख) कवि ने किसकी दुर्दशा का वर्णन किया है ?
(ग) भारतीय कृषक की दुर्दशा के बारे में बताइए।
(घ) ‘जीवन के पारावार’ किसे कहा गया हैं तथा क्यों?

उत्तर-

(क) विप्लव के वीर! बादल को कहा गया है। बादल क्रांति का प्रतीक है। क्रांति द्वारा विषमता दूर करने तथा किसानमजदूर वर्ग का जीवन खुशहाल बनाने के लिए उसको बुलाया जा रहा है। किसान और मजदूर वर्ग की दुर्दशा का कारण पूँजीपतियों द्वारा उनका शोषण किया जाना है।
(ख) कवि ने भारतीय किसान की दुर्दशा का वर्णन किया है।
(ग) भारतीय कृषक पूरी तरह शोषित है। वह गरीब व बेसहारा है। शोषकों ने उससे जीवन की सारी सुविधाएँ छीन ली हैं। उसका शरीर हड्डयों का ढाँचा मात्र रह गया है।
(घ) ‘जीवन के पारावार’ बादल को कहा गया है। बादल वर्षा करके जीवन को बनाए रखते हैं। फसल उत्पन्न होती है तथा पानी की कमी दूर होती है। इसके अलावा क्रांति से शोषण समाप्त होता है और जीवन खुशहाल बनता है।

काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

1. निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए–

रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अग से लिपट भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल 
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,

तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया हैं उसका सार,
धनी, वज़-गजन से बादल।
त्रस्त-नयन मुख ढाँप रहे हैं।
ऐ जीवन के पारावार ! (CBSE (Outside), 2008 (C)]

प्रश्न

(क) धनिकों और कृषकों के लिए प्रयुक्त विशेषणों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘विल्पव के वीर’ शब्द के सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए।
(ग) इस कव्यांस की भाषिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

(क) कवि ने धनिकों के लिए रुद्ध, आतंक, त्रस्त आदि विशेषणों का प्रयोग किया है। ये उनकी घबराहट की दशा को बताते हैं। कृषकों के लिए जीर्ण, शीर्ण, अधीर आदि प्रयुक्त विशेषणों से किसानों की दीन-हीन दशा का चित्रण होता है।
(ख) ‘विप्लव के वीर’ शब्द का प्रयोग बादल के लिए किया गया है। बादल को क्रांति का अग्रणी माना गया है। बादल हर तरफ विनाश कर सकता है। इस विनाश के उपरांत भी बादल का अस्तित्व ज्यों-का-त्यों रह जाता है।
(ग) इस काव्यांश में कवि ने विशेषणों का सुंदर प्रयोग किया है। आतंक, वज्र, जीर्ण-शीर्ण आदि विशेषण मन:स्थिति को सटीक रूप से व्यक्त करते हैं। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। संबोधन शैली भी है। अनुप्रास अलंकार की छटा है।

2.

अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पद्र्धा धीर,
हँसते हैं छोटे पैधे लघुभार-
शस्य अपार,

हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।         [CBSE (Outside), 2011 (C)]

प्रश्न

(क) आशय स्पष्ट कीजिए-‘ विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते ‘।
(ख) पवत के लिए प्रयुक्त विशेषणों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) वज्रपात करने वाले भीषण बादलों का छोटे पौधे कैसे आहवान करते हैं और क्यों ? 

उत्तर-

(क) इसका आशय यह है कि क्रांति से शोषक वर्ग हिल जाता है। उसे इससे अपना विनाश दिखाई देता है। किसान-मजदूर वर्ग अर्थात शोषित वर्ग क्रांति से प्रसन्न होता है। क्योंकि उन्हें इससे शोषण से मुक्ति तथा खोया अधिकार मिलता है।
(ख) पर्वत के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया गया है-

● अशनि-पात से शापित- यह विशेषण उन पर्वतों के लिए है जो बिजली गिरने से भयभीत हैं। क्रांति से बड़े लोग ही भयभीत होते हैं। इस विशेषण का प्रयोग संपूर्ण शोषक वर्ग के लिए किया गया है।
● क्षत-विक्षत हत अचल शरीर- यह विशेषण क्रांति से घायल, भयभीत व सुन्न होकर बिखरे हुए शोषकों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

(ग) वज्रपात करने वाले भीषण बादलों का आहवान छोटे पौधे हिल-हिलकर, खिल-खिलकर तथा हाथ हिलाकर करते हैं क्योंकि क्रांति से ही उन्हें न्याय मिलने की आशा होती है। उन्हें ही सर्वाधिक लाभ पहुँचता है।

3.

अट्टालिका नहीं है रे
आंतक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,

क्षुद्र प्रफुल्ल जलजे सँ
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।  [CBSE (Delhi), 2015]

प्रश्न

(क) काव्यांश की दो भाषिक विशेषताओं का उल्लख कीजिए।
(ख) काव्यांश की अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए।
(ग)  काव्यांश की भाव-सौंदर्य लोखिए। 

उत्तर-

(क) काव्य की दो भाषिक विशेषताएँ

(i) तत्सम शब्दावली की बहुलतायुक्त खड़ी बोली।
(ii) भाषा में प्रतीकात्मकता है।

(ख) शोक में भी हँसता है-विरोधाभास अलंकार।
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core - काव्य भाग - बादल राग-1
(ग) कवि के अनुसार धनियों के आवास शोषण के केंद्र हैं। यहाँ सदा शोषण के नए-नए तरीके ढूँढ़े जाते हैं। लेकिन शोषण की चरम-सीमा के बाद होने वाली क्रांति शोषण का अंत कर देती है। साथ ही शोषित वर्ग के बच्चे भी संघर्षशील तथा जुझारू होते हैं। वे रोग तथा शोक में भी प्रसन्नचित्त रहते हैं।

4.

तिरती हैं समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निदय विप्लव की प्लावित माया-

यह तेरी रण-तरी
भरी आकाक्षाआों से, 
घन, भरी-गजन से सजग सुप्त अकुर। [CBSE (Foreign), 2014]

प्रश्न

(क) काव्याशा का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ख) प्रयुक्त अलकार का नाम लिखिए और उसका सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग)  काव्यांश की भाषा पर टिपण्णी कीजिए । 

उत्तर-

(क) इस काव्यांश में कवि ने बादल को क्रांति का प्रतीक माना है। वह कहता है कि जीवन के सुखों पर दुखों की अदृश्य क्षति ही है। बालक शो सुलेह पृथ के पापं में बिजअंकुल हक आक्शक ओ निहारते हैं।
(ख) ‘समीर सागर’, ‘विप्लव के बादल’, ‘दुख की छाया में’ रूपक अलंकार; ‘फिर-फिर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा ‘सजग सुप्त’ में अनुप्रास अलंकार हैं। इन अलंकारों के प्रयोग से भाषिक सौंदर्य बढ़ गया है।
(ग) काव्यांश में प्रयुक्त भाषा संस्कृत शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है जिसमें दृश्य बिंब साकार हो उठा है। ‘मेरी गर्जन’ में बादलों की गर्जना से श्रव्य बिंब उपस्थित है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

कविता के साथ

1. ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में ‘दुख की छाया’ किसे कहा गया हैं और क्यों? [CBSE (Delhi), 2009 (C)]
उत्तर-
कवि ने ‘दुख की छाया’ मानव-जीवन में आने वाले दुखों, कष्टों को कहा है। कवि का मानना है कि संसार में सुख कभी स्थायी नहीं होता। उसके साथ-साथ दुख का प्रभाव रहता है। धनी शोषण करके अकूत संपत्ति जमा करता है परंतु उसे सदैव क्रांति की आशंका रहती है। वह सब कुछ छिनने के डर से भयभीत रहता है।

2. अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर ‘ पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया है ? [CBSE Sample Paper, 2013, (Delhi), 2009 (C)]
उत्तर-
इस पंक्ति में कवि ने पूँजीपति या शोषक या धनिक वर्ग की ओर संकेत किया है। ‘बिजली गिरना’ का तात्पर्य क्रांति से है। क्रांति से जो विशेषाधिकार-प्राप्त वर्ग है, उसकी प्रभुसत्ता समाप्त हो जाती है और वह उन्नति के शिखर से गिर जाता हैं। उसका गर्व चूर-चूर हो जाता है।

3. ‘ विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते ‘ पंक्ति में  ‘ विप्लव-रव ‘ से क्या तात्पर्य है ? ‘ छोटे ही है हैं शोभा पाते ‘ एसा क्यों कहा गया है ?
[CBSE (Outside), 2011. (Delhi), 2009]
उत्तर-
विप्लव-रव से तात्पर्य है-क्रांति-गर्जन। जब-जब क्रांति होती है तब-तब शोषक वर्ग या सत्ताधारी वर्ग के सिंहासन डोल जाते हैं। उनकी संपत्ति, प्रभुसत्ता आदि समाप्त हो जाती हैं। कवि ने कहा है कि क्रांति से छोटे ही शोभा पाते हैं। यहाँ ‘छोटे’ से तात्पर्य है-आम आदमी। आम आदमी ही शोषण का शिकार होता है। उसका छिनता कुछ नहीं है अपितु उसे कुछ अधिकार मिलते हैं। उसका शोषण समाप्त हो जाता है।

4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती हैं?’
उत्तर-
बादलों के आगमन से प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं

(i) बादल गर्जन करते हुए मूसलाधार वर्षा करते हैं।
(ii) पृथ्वी से पौधों का अंकुरण होने लगता है।
(iii) मूसलाधार वर्षा होती है।
(iv) बिजली चमकती है तथा उसके गिरने से पर्वत-शिखर टूटते हैं।
(v) हवा चलने से छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाते से प्रतीत होते हैं।
(vi) गरमी के कारण दुखी प्राणी बादलों को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं।

5. व्याख्या कीजिए-

(क) तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया-

(ख) अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,

उत्तर-
इनकी व्याख्या के लिए क्रमश: व्याख्या-1 व 3 देखिए।

कला की बात

1. पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। आपको  प्रकृति का कौन-सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों ?
उत्तर-
कवि ने पूरी कविता में प्रकृति का मानवीकरण किया है। मुझे प्रकृति का निम्नलिखित मानवीय रूप पसंद आया-

हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार-
शस्य अपार,
हिल-हिल

खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,

इस काव्यांश में छोटे-छोटे पौधों को शोषित वर्ग के रूप में बताया गया है। इनकी संख्या सर्वाधिक होती है। ये क्रांति की संभावना से प्रसन्न होते हैं। ये हाथ हिला-हिलाकर क्रांति का आहवान करते हुए प्रतीत होते हैं। यह कल्पना अत्यंत सुंदर है।

2. कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ-कहाँ हुआ है ? संबंधित वाक्यांश को छाँटकर लिखिए ।
उत्तर-
रूपक अलंकार के प्रयोग की पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-

 तिरती है समीर-सागर पर
● अस्थिर सुख पर दुख की छाया
 यह तेरी रण-तरी

 भेरी–गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
● 
ऐ विप्लव के बादल 
● 
ऐ जीवन के पारावार

3. इस कविता में बादल के लिए ‘ ऐ विप्लव के वीर! ‘ तथा ‘ के  ‘ ऐ जीवन के पारावार!’ जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। ‘ बादल राग ‘कविता के शेष पाँच खंडों में भी कई संबोधानें का इस्तेमाल किया गया है। जैसे- ओर वर्ष के हर्ष !’ मेरे पागाल बादल !, ऐ निर्बंध !, ऐ स्वच्छंद! , ऐ उद्दाम! ,
ऐ सम्राट! ,ऐ विप्लव के प्लावन! , ऐ अनंत के  चंचल शिशु सुकुमार!
 उपर्युक्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य हैं?

उत्तर-
इन संबोधनों का प्रयोग करके कवि ने न केवल कविता की सार्थकता को बढ़ाया है, बल्कि प्रकृति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपादान का सुंदर चित्रण भी किया है। बादल के लिए किए संबोधनों की व्याख्या इस प्रकार है-
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core - काव्य भाग - बादल राग-3

4. कवि बादलों को किस रूप में देखता हैं? कालिदास ने ‘मेघदूत’ काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा/अप अपना कोई काल्पनिक बिंब दीजिए
उत्तर-
कवि बादलों को क्रांति के प्रतीक के रूप में देखता है। बादलों के द्वारा वह समाज में व्याप्त शोषण को खत्म करना चाहता है ताकि शोषित वर्ग को अपने अधिकार मिल सकें। काल्पनिक बिंब- हे आशा के रूपक हमें जल्दी ही सिक्त कर दो अपनी उजली और छोटी-छोटी बूंदों से जिनमें जीवन का राग छिपा है। हे आशा के संचारित बादल!

5. कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता हैं जैसे-अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया हैं। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ हैं?
उत्तर-
कविता में कवि ने अनेक विशेषणों का प्रयोग किया है जो निम्नलिखित हैं

(i) निर्दय विप्लव- विनाश को अधिक निर्मम व विनाशक बताने हेतु ‘निर्दय’ विशेषण।
(ii) दग्ध हृदय- दुख की अधिकता व संतप्तता हेतु’दग्ध’विशेषण।
(iii) सजग- सुप्त अंकुर- धरती के भीतर सोए, किंतु सजग अंकुर-हेतु ‘सजग-सुप्त’ विशेषण।
(iv) वज्रहुंकार- हुंकार की भीषणता हेतु ‘वज्र’ विशेषण।
(v) गगन-स्पर्शी- बादलों की अत्यधिक ऊँचाई बताने हेतु ‘गगन’।
(vi) आतंक-भवन- भयावह महल के समान आतंकित कर देने हेतु।
(vii) त्रस्त नयन- आँखों की व्याकुलता।
(viii) जीर्ण बाहु- भुजाओं की दुर्बलता।
(ix) प्रफुल्ल जलज- कमल की खिलावट।
(x) रुदध कोष- भरे हुए खजानों हेतु।

अन्य हल प्रश्न

लघूत्तरात्मक प्रश्न

1. ‘बादल राग ‘ कविता के आधार पर भाव स्पष्ट कीजिए-
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।

अथवा

‘बादल राग’ कविता में कवि ने बादलों के बहाने क्रांत का आहवान किया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए। [CBSE (Outside), 2014]
उत्तर-
‘विप्लव-रव’ से तात्पर्य है-क्रांति का स्वर। क्रांति का सर्वाधिक लाभ शोषित वर्ग को ही मिलता है क्योंकि उसी के अधिकार छीने गए होते हैं। क्रांति शोषक वर्ग के विशेषाधिकार खत्म होते हैं। आम व्यक्ति को जीने के अधिकार मिलते हैं। उनकी दरिद्रता दूर होती है। अत: क्रांति की गर्जना से शोषित वर्ग प्रसन्न होता है।

2. क्रांति की गर्जना का  शोषक वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उनका मुख ढँकना किस मानसिकता का द्योतक है ? ‘ बादल राग ‘ कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
शोषक वर्ग ने आर्थिक साधनों पर एकाधिकार जमा लिया है, परंतु क्रांति की गर्जना सुनकर वह अपनी सत्ता को खत्म होते देखता है। वह बुरी तरह भयभीत हो जाता है। उसकी शांति समाप्त हो जाती है। शोषक वर्ग का मुख ढाँकना उसकी कमजोर स्थिति को दर्शाता है। क्रांति के परिणामों से शोषक वर्ग भयभीत है।

3. ” ‘बादल राग ‘ जीवन-निर्माण के नए राग का सूचक है। ” स्पष्ट कीजिए।  
उत्तर-
‘ बादल राग’ कविता में कवि ने लघु-मानव की खुशहाली का राग गाया है। वह आम व्यक्ति के लिए बादल का आहवान क्रांति के रूप में करता है। किसानों तथा मजदूरों की आकांक्षाएँ बादल को नवनिर्माण के राग के रूप में पुकार रही हैं। क्रांति हमेशा वंचितों का प्रतिनिधित्व करती है। बादलों के अंग-अंग में बिजलियाँ सोई हैं, वज्रपात से शरीर आहत होने पर भी वे हिम्मत नहीं हारते। गरमी से हर तरफ सब कुछ रूखा-सूखा और मुरझाया-सा है। धरती के भीतर सोए अंकुर नवजीवन की आशा में सिर ऊँचा करके बादल की ओर देख रहे हैं। क्रांति जो हरियाली लाएगी, उससे सबसे अधिक उत्फुल्ल नए पौधे, छोटे बच्चे ही होंगे।

4. ‘बादल राग ‘ कविता में ‘ऐ विप्लव के वीरJ’किसे कहा गया हैं और क्यों? [CBSE (Delhi), 2008]
उत्तर-
‘बादल राग’ कविता में ‘ऐ विप्लव के वीर!’ बादल को कहा गया है। बादल घनघोर वर्षा करता है तथा बिजलियाँ गिराता है। इससे सारा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। बादल क्रांति का प्रतीक है। क्रांति आने से बुराई रूपी कीचड़ समाप्त हो जाता है तथा आम व्यक्ति को जीने योग्य स्थिति मिलती है।

5.  ‘बादल राग’ शीर्षिक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
‘बादल राग’ क्रांति की आवाज का परिचायक है। यह कविता जनक्रांति की प्रेरणा देती है। कविता में बादलों के आने से नए पौधे हर्षित होते हैं, उसी प्रकार क्रांति होने से आम आदमी को विकास के नए अवसर मिलते हैं। कवि बादलों का बारिश करने या क्रांति करने के लिए करता है। यह शीर्षक उद्देश्य के अनुरूप है। अत: यह शीर्षक सर्वथा उचित है।

6. विप्लवी बादल कीयुद्ध-नौका कीकौन-कौन-सी विशेषताएँ बताई गाए है ?
उत्तर-
कवि ने विप्लवी बादल की युद्ध-नौका की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं

(i) यह समीर-सागर में तैरती है।
(ii) यह भेरी-गर्जन से सजग है।
(iii) इसमें ऊँची आकांक्षाएँ भरी हुई हैं।

7. प्रस्तुत पद्यश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

अट्टालिका नहीं है रे
आतक-भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लवन
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।

(क) कवि अट्टालिकाओं को आतंक-भवन क्यों मानता है?
(ख) ‘पंक’ और ‘जलज’ का प्रतीकार्थ बताइए।
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए-
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन।
(घ) शिशु का उल्लेख यहाँ क्यों किया गया है? [CBSE (Delhi), 2014]

उत्तर-

(क) धनिकों के आवासों को ‘आतंक-भवन’ की संज्ञा दी गई है क्योंकि इन भवनों में शोषण के नए-नए तरीके खोजे जाते हैं। ये आवास शोषण से लूटी गई संपत्ति के केंद्र भी होते हैं।
(ख) ‘पंक’ का प्रतीकार्थ है-साधारण शोषित एवं उपेक्षित लोगों का तथा ‘अट्टालिका’ शोषक पूँजीपतियों का प्रतीक है।
(ग) ‘सदा पंक पर ही होता/जल-विप्लव प्लावन’ का आशय है-वर्षा से जो बाढ़ आती है वह सदा कीचड़-भरी धरती को ही डुबोती है। अर्थात शोषण की मार सबसे अधिक दबे-कुचले और गरीबों को ही झेलनी पड़ती है।

8. ‘बादल राग ‘ कविता में कवि निराला की किस क्रांतिकारी विचारधारा का पता चलता हैं? [CBSE Sample Paper, 2015]
उत्तर-
‘बादल राग’ कविता में कवि की क्रांतिकारी विचारधारा का ज्ञान होता है। वह समाज में व्याप्त पूँजीवाद का घोर विरोध करता हुआ दलित-शोषित वर्ग के कल्याण की कामना करता हुआ, उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाना चाहता है। कवि ने बादलों की गर्जना, बिजली की कड़क को जनक्रांति का रूप बताया है। इस जनक्रांति में धनी वर्ग का पतन होता है और छोटे वर्ग-मजदूर, गरीब, शोषित आदि-उन्नति करते हैं।

9. ‘बादल राग’ कविता में अट्टालिकाओं को आतंक-भवन क्यों कहा गया है?
उत्तर-
‘बादल राग’ कविता में अट्टालिकाओं को आतंक-भवन इसलिए कहा गया है क्योंकि इन भवनों में शोषण के नए-नए तरीके खोजे जाते हैं। ये ऊँचे-ऊँचे भवन शोषण से लूटी गई संपत्ति के केंद्र होते हैं।

स्वयं करें

  1. बादलों का गर्जन सुनकर पृथ्वी के उर में सुप्त अंकुर में किस तरह आशा का संचरण हो उठता है?’बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए।
  2. ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? स्पष्ट कीजिए।
  3. विप्लव के बादल किनके-किनके मीत हैं और क्यों?
  4. ‘बादल राग’ कविता में किनका कोष रुद्ध होने की बात कही गई है? इससे कौन आक्रोशित है और क्यों?
  5. ‘विप्लव के वीर’ को अधीर कृषक आशाभरी निगाहों से क्यों देखता है?
  6. विप्लव के बादल देखकर समाज का संपन्न वर्ग अपनी प्रतिक्रिया कैसे व्यक्त करता है? ‘बादल राग’ कविता के आधार पर लिखिए।
  7. स्पष्ट कीजिए कि कवि निराला शोषित वर्ग एवं किसानों के सच्चे हितैषी थे।
  8. सिद्ध कीजिए कि ‘बादल राग’ कविता का प्रमुख स्वर नवनिर्माण है।
  9. निम्नलिखित काव्यांशों के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    (अ)
    तिरती है समीर-सागर पर
    अस्थिर सुख पर दुख की छाया-
    जग के दग्घ हृदय पर
    निर्दय विप्लव की प्लावित माया
    यह तेरी रण-तरी
    भरी आकांक्षाओं से
    घन, भेरी–गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
    (क)भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
    (ख) काव्यांश में अलकार-सौंदय स्पष्ट कीजिए।
    (ग) काव्यांश की बिंब-योजना लिखिए।

    (ब)

    अट्टालिका नहीं है रे
    आतंक-भवन
    सदा पंक पर ही होता
    जल विप्लव प्लावन,
    (क) काव्यांश में  प्रयुक्त प्रतीकों को  स्पष्ट कीजिए।
    (ख) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
    (ग) काव्यांश की भाषा शैली की विशेशताएँ  लिखिए

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