Follow on G+

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – अपठित काव्यांश-बोध

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – अपठित काव्यांश-बोध

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – अपठित काव्यांश-बोध is designed keeping in mind the need of Hindi learners, with the adjustment of current important subjects, which gives you full notes, which you can get good marks in the upcoming examinations by studying.

All NCERT Class 12 HINDI PDF solutions provided by www.mathspdfsolution.co and we have solved all types of questions with 1 mark, short questions and long questions and provide the solutions given below.

अपठित काव्यांश-बोध

अपठित काव्यांश क्या है?
वह काव्यांश, जिसका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है, अपठित काव्यांश कहलाता है। परीक्षा में इन काव्यांशों से विद्यार्थी की भावग्रहण-क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।

परीक्षा में प्रश्न का स्वरूप
परीक्षा में विद्यार्थियों को अपठित काव्यांश दिया जाएगा। उस काव्यांश से संबंधित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा तथा कुल प्रश्न पाँच अंक के होंगे।

प्रश्न हल करने की विधि
अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्न हल करते समय निम्नलिखित बिंदु ध्यातव्य हैं-

  • विद्यार्थी कविता को मनोयोग से पढ़ें, ताकि उसका अर्थ समझ में आ जाए। यदि कविता कठिन है, तो उसे बार-बार पढ़ें, ताकि भाव स्पष्ट हो सके।
  • कविता के अध्ययन के बाद उससे संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
  • प्रश्नों के अध्ययन के बाद कविता को दुबारा पढ़िए तथा उन पंक्तियों को चुनिए, जिनमें प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हों।
  • जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर मिल जाएँ उन्हें लिखिए।
  • कुछ प्रश्न कठिन या सांकेतिक होते हैं। उनका उत्तर देने के लिए कविता का भाव-तत्व समझिए।
  • प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
  • प्रश्नों के उत्तर की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
  • उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
  • प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। इससे उत्तरों की स्पष्टता बढ़ेगी।

उदाहरण

निम्नलिखित काव्यांशों तथा इन पर आधारित प्रश्नोत्तरों को ध्यानपूर्वक पढ़िए –

1. अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ।
तूफानों-भूचालों की भयप्रद छाया में,
मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता हूँ।

मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी इतनी व्यापक है,
इसमें मुझ-से अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है।
मैं खंडहर को फिर से महल बना सकता हूँ।

जब-जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं,
प्रलय-मेघ भूचाल देख मुझको शरमाए।
मैं मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।

प्रश्न

(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में किसका महत्व प्रतिपादित किया गया है?
(ख) स्वर्ग के प्रति मजदूर की विरक्ति का क्या कारण है?
(ग) किन कठिन परिस्थितियों में उसने अपनी निर्भयता प्रकट की है?
(घ) मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी इतनी व्यापक है,
इसमें मुझ-से अगणित प्राणी आ जाते हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट करके लिखिए।
() अपनी शक्ति और क्षमता के प्रति उसने क्या कहकर अपना आत्म-विश्वास प्रकट किया है?

उत्तर-

(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में मजदूर की शक्ति का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
(ख) मज़दूर निर्माता है । वह अपनी शक्ति से धरती पर स्वर्ग के समान सुंदर बस्तियाँ बना सकता है। इस कारण उसे स्वर्ग से विरक्ति है।
(ग)  मज़दूर ने तूफानों व भूकंपों जैसी मुश्किल परिस्थितियों में भी घबराहट प्रकट नहीं की है। वह हर मुसीबत का सामना करने को तैयार रहता है।
(घ)  इसका अर्थ यह है कि ‘मैं’ सर्वनाम शब्द श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है। कवि कहना चाहता है कि मजदूर वर्ग में संसार के सभी क्रियाशील प्राणी आ जाते हैं।
()
  मज़दूर ने कहा है कि वह खंडहर को भी आबाद कर सकता है। उसकी शक्ति के सामने भूचाल, प्रलय व बादल भी झुक जाते हैं।

2.

निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु एक है विश्राम-स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नव जीवन संबल ।
मृत्यु एक सरिता है, जिसमें
श्रम से कातर जीव नहाकर

फिर नूतन धारण करता है,
काया रूपी वस्त्र बहाकर।
सच्चा प्रेम वही है जिसकी 
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर!
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर ।

प्रश्न

(क) कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है?
(ख) मृत्यु को विश्राम-स्थल क्यों कहा गया है?
(ग) कवि ने मृत्यु की तुलना किससे और क्यों की है?
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव में क्या परिवर्तन आ जाता है?
() सच्चे प्रेम की क्या विशेषता बताई गई है और उसे कब निष्प्राण कहा गया है?

उत्तर-

(क) मृत्यु के बाद मनुष्य फिर नया रूप लेकर कार्य करने लगता है, इसलिए कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय होने को कहा है।
(ख) कवि ने मृत्यु को विश्राम-स्थल की संज्ञा दी है। कवि का कहना है कि जिस प्रकार मनुष्य चलते-चलते थक जाता है और विश्राम-स्थल पर रुककर पुन: ऊर्जा प्राप्त करता है, उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव नए जीवन का सहारा लेकर फिर से चलने लगता है।
(ग) कवि ने मृत्यु की तुलना सरिता से की है, क्योंकि जिस तरह थका व्यक्ति नदी में स्नान करके अपने गीले वस्त्र त्यागकर सूखे वस्त्र पहनता है, उसी तरह मृत्यु के बाद मानव नया शरीर रूपी वस्त्र धारण करता है।
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव नया शरीर धारण करता है तथा पुराने शरीर को त्याग देता है।
() सच्चा प्रेम वह है, जो आत्मबलिदान देता है। जिस प्रेम में त्याग नहीं होता, वह निष्प्राण होता है।

3.

जीवन एक कुआँ है
अथाह- अगम
सबके लिए एक-सा वृत्ताकार !
जो भी पास जाता है,
सहज ही तृप्ति, शांति, जीवन पाता ह !
मगर छिद्र होते हैं जिसके पात्र में,
रस्सी-डोर रखने के बाद भी,
हर प्रयत्न करने के बाद भी-
वह यहाँ प्यासा-का-प्यासा रह जाता है।
मेरे मन! तूने भी, बार-बार
बड़ी-बड़ी रस्सियाँ बटीं
रोज-रोज कुएँ पर गया

तरह-तरह घड़े को चमकाया,
पानी में डुबाया, उतराया
लेकिन तू सदा ही 
प्यासा गया, प्यासा ही आया !
और दोष तूने दिया
कभी तो कुएँ को
कभी पानी को
कभी सब को
मगर कभी जाँचा नहीं खुद को
परखा नहीं घड़े की तली को
चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को
और मूढ़! अब तो खुद को परख देख!

प्रश्न

(क) कविता में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है? कैसा व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है?
(ख) कवि का मन सभी प्रकार के प्रयासों के उपरांत भी प्यासा क्यों रह जाता है?
(ग) ‘और तूने दोष दिया ……… कभी सबको’ का आशय क्या है?
(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो रही हो तो उसे किन बातों की जाँच-परख करनी चाहिए?
() ‘चीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को ‘- यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से किस ओर संकेत किया गया है ?

उत्तर-

(क) कवि ने जीवन को कुआँ कहा है, क्योंकि जीवन भी कुएँ की तरह अथाह व अगम है। दोषी व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।
(ख) कवि ने कभी अपना मूल्यांकन नहीं किया। वह अपनी कमियों को नहीं देखता। इस कारण वह सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद प्यासा रह जाता है।
(ग) ‘और तूने दोष दिया ……… कभी सबको’ का आशय है कि हम अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं।
(घ) यदि   किसी को असफलता प्राप्त  हो तो उसे अपनी कमियों के बारे में जानना चाहए । उन्हें सुधार करके कार्य करने चाहिए।
() यहाँ असंख्य छिद्रों के माध्यम से मनुष्य की कमियों की ओर संकेत किया गया है।

4.

माना आज मशीनी युग में, समय बहुत महँगा है लेकिन
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं!

उम्र बहुत बाकी है लेकिन, उम्र बहुत छोटी भी तो है
एक स्वप्न मोती का है तो, एक स्वप्न रोटी भी तो है
घुटनों में माथा रखने से पोखर पार नहीं होता है :
सोया है विश्वास जगा लो, हम सब को नदिया तरनी है!
तुम थोड़ा अवकाश निकालो, तुमसे दो बातें करनी हैं!

मन छोटा करने से मोटा काम नहीं छोटा होता है,
नेह-कोष को खुलकर बाँटो, कभी नहीं टोटा होता है,
आँसू वाला अर्थ न समझे, तो सब ज्ञान व्यर्थ जाएँगे :
मत सच का आभास दबा लो, शाश्वत आग नहीं मरनी है!
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं!

प्रश्न

(क) मशीनी युग में समय महँगा होने का क्या तात्पर्य है? इस कथन पर आपकी क्या राय है?
(ख) ‘मोती का स्वप्न’ और ‘रोटी का स्वप्न’ से क्या तात्पर्य है? दोनों किसके प्रतीक हैं?
(ग) ‘घुटनों में माथा रखने से पोखर पार नहीं होता है’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘मन’ और ‘स्नेह’ के बारे में कवि क्या परामर्श दे रहा है और क्यों?
() सच का आभास क्यों नहीं दबाना चाहिए?

उत्तर-

(क) इस युग  में व्यक्ति समय के साथ बाँध गया है । उसे हर घंटे के हीसाब से मज़बूरी मिलती है । हमारी राय में यह बात सही है ।
(ख) ‘ मोती का स्वप्न ‘ का तात्पर्य वैभवयुक्त जीवन की आकांक्षा से है तथा ‘रोटी का स्वप्न’ का तात्पर्य जीवन की मूल जरूरतों को पूरा करने से है। दोनों अमीरी व गरीबी के प्रतीक हैं।
(ग) इसका भाव यह है कि मानव निष्क्रिय होकर आगे नहीं बढ़ सकता। उसे परिश्रम करना होगा, तभी उसका विकास हो सकता है।
(घ) ‘मन’ के बारे में कवि का मानना है कि मनुष्य को हिम्मत रखनी चाहिए। हौसला खोने से कार्य या बाधा खत्म नहीं होती। ‘स्नेह’ भी बाँटने से कभी कम नहीं होता। कवि मनुष्य को मानवता के गुणों से युक्त होने के लिए कह रहा है।
() सच का आभास इसलिए नहीं दबाना चाहिए, क्योंकि इससे वास्तविक समस्याएँ समाप्त नहीं हो जातीं।

5.

नवीन कंठ दो कि मैं नवीन गान गा सकूं,
स्वतंत्र देश की नवीन आरती सजा सकूं !
नवीन दृष्टि का नया विधान आज हो रहा,
नवीन आसमान में विहान आज हो रहा,
खुली दसों दिशा खुले कपाट ज्योति-द्वार के-
विमुक्त राष्ट्र-सूर्य भासमान आज हो रहा।
युगांत की व्यथा लिए अतीत आज रो रहा,
दिगंत में वसंत का भविष्य बीज बो रहा,
कुलीन जो उसे नहीं गुमान या गरूर है,
समर्थ शक्तिपूर्ण जो किसान या मजूर है।
भविष्य-द्वार मुक्त से स्वतंत्र भाव से चलो,
मनुष्य बन मनुष्य से गले मिले चले चलो,
समान भाव के प्रकाशवान सूर्य के तले-
समान रूप-गंध फूल-फूल-से खिले चलो।

सुदीर्घ क्रांति झेल, खेल की ज्वलंत आग से-
स्वदेश बल सँजो रहा, कडी थकान खो रहा।
प्रबुद्ध राष्ट्र की नवीन वंदना सुना सकूं,
नवीन बीन दो कि मैं अगीत गान गा सकूं!
नए समाज के लिए नवीन नींव पड़ चुकी,
नए मकान के लिए नवीन ईंट गढ़ चुकी,
सभी कुटुंब एक, कौन पास, कौन दूर है
नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है।
पुराण पंथ में खड़े विरोध वैर भाव के
त्रिशूल को दले चलो, बबूल को मले चलो।
प्रवेश-पर्व है स्वदेश का नवीन वेश में
मनुष्य बन मनुष्य से गले मिलो चले चलो।
नवीन भाव दो कि मैं नवीन गान गा सकूं,
नवीन देश की नवीन अर्चना सुना सकूं! “

प्रश्न

(क) कवि नई आवाज की आवश्यकता क्यों महसूस कर रहा है?
(ख) ‘नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि मनुष्य को क्या परामर्श दे रहा है?
(घ) कवि किस नवीनता की कामना कर रहा है?
()
 किसान और कुलीन की क्या विशेषता बताई गई है?

उत्तर-

(क) कवि नई आवाज की आवश्यकता इसलिए महसूस कर रहा है, ताकि वह स्वतंत्र देश के लिए नए गीत गा सके तथा नई आरती सजा सके।
(ख) इसका आशय यह है कि स्वतंत्र भारत का हर व्यक्ति प्रकाश के गुणों से युक्त है। उसके विकास से भारत का विकास
(ग) कवि मनुष्य को परामर्श दे रहा है कि आजाद होने के बाद हमें अब मैत्रीभाव से आगे बढ़ना है। सूर्य व फूलों के समान समानता का भाव अपनाना है।
(घ) कवि कामना करता है कि देशवासियों को वैर-विरोध के भावों को भुलाना चाहिए। उन्हें मनुष्यता का भाव अपनाकर
सौहाद्रता से आगे बढ़ना चाहिए।
() किसान समर्थ व शक्तिपूर्ण होते हुए भी समाज के हित में कार्य करता है तथा कुलीन वह है, जो घमंड नहीं दिखाता।

6.

जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
जो महाप्रलय में मुस्काए
जो अंतिम दम तक रहे डटे
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त-तिलक-भारत-ललाट!

उनको मेरा पहला प्रणाम !
फिर वे जो ऑधी बन भीषण
कर रहे आज दुश्मन से रण
बाणों के पवि-संधान बने
जो ज्वालामुख-हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर
बाधाओं के पर्वत चढ़कर
जो न्याय-नीति को अर्पित हैं
भारत के लिए समर्पित हैं
कीर्तित जिससे यह धरा धाम
उन वीरों को मेरा प्रणाम

श्रद्धानत कवि का नमस्कार
दुर्लभ है छंद-प्रसून हार
इसको बस वे ही पाते हैं
जो चढ़े काल पर आते हैं
हुम्कृति से विश्व काँपते हैं
पर्वत का दिल दहलाते हैं
रण में त्रिपुरांतक बने शर्व
कर ले जो रिपु का गर्व खर्च
जो अग्नि-पुत्र, त्यागी, अकाम
उनको अर्पित मेरा प्रणाम !

प्रश्न

(क) कवि किन वीरों को प्रणाम करता है?
(ख) कवि ने भारत के माथे का लाल चंदन किन्हें कहा है?
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक किस तरह वार करते हैं?
(घ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
() कवि की श्रद्धा किन वीरों के प्रति है?

उत्तर-

(क) कवि उन वीरों को प्रणाम करता है, जिनमें स्वदेश का मान भरा है तथा जो साहस और निडरता से अंतिम दम तक देश के लिए संघर्ष करते हैं।
(ख) कवि ने भारत के माथे का लाल चंदन (तिलक) उन वीरों को कहा है, जिन्होंने देश की वेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक आँधी की तरह भीषण वार करते हैं तथा आग उगलते हुए उनके किलों को तोड़ देते हैं।
(घ) शीर्षक- वीरों को मेरा प्रणाम!
() कवि की श्रद्धा उन वीरों के प्रति है, जो मृत्यु से नहीं घबराते, अपनी हुंकार से विश्व को कैंपा देते हैं तथा जिनके साहस और वीरता की कीर्ति धरती पर फैली हुई है।

7.

पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।
पुरुष क्या, पुरुषार्थ हुआ न जो,
हृदय की सब दुर्बलता तजो।
प्रबल जो तुम में पुरुषार्थ हो,
सुलभ कौन तुम्हें न पदार्थ हो?
प्रगति के पथ में विचरों उठो ।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।।

न पुरुषार्थ बिना कुछ स्वार्थ है,
न पुरुषार्थ बिना परमार्थ है।
समझ लो यह बात यथार्थ है
कि पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ है।
भुवन में सुख-शांति भरो, उठो।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो ।।

न पुरुषार्थ बिना स्वर्ग है,
न पुरुषार्थ बिना अपसर्ग है।
न पुरुषार्थ बिना क्रियत कहीं,
न पुरुषार्थ बिना प्रियता कहीं।
सफलता वर-तुल्य वरो, उठो ।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।।

न जिसमें कुछ पौरुष हो यहाँ-
सफलता वह पा सकता कहाँ ?
अपुरुषार्थ भयंकर पाप है,
न उसमें यश है, न प्रताप है।
न कृमि-कीट समान मरो, उठो ।
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।।

प्रश्न

(क) काव्यांश के प्रथम भाग के माध्यम से कवि ने मनुष्य को क्या प्रेरणा दी है?
(ख) मनुष्य पुरुषार्थ से क्या-क्या कर सकता है?
(ग)  ‘सफलता वर-तुल्य वरो, उठो’—पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ)  ‘अपुरुषार्थ भयंकर पाप है’-कैसे?
()  काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।

उत्तर-

(क) इसके माध्यम से कवि ने मनुष्य को प्रेरणा दी है कि वह अपनी समस्त शक्तियाँ इकट्ठी करके परिश्रम करे तथा उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाए।
(ख) पुरुषार्थ से मनुष्य अपना व समाज का भला कर सकता है। वह विश्व में सुख-शांति की स्थापना कर सकता है।
(ग)  इसका अर्थ है कि मनुष्य निरंतर कर्म करे तथा वरदान के समान सफलता को धारण करे। दूसरे शब्दों में, जीवन में सफलता के लिए परिश्रम  आवश्यक है।
(घ) अपुरुषार्थ का अर्थ यह है-कर्म न करना। जो व्यक्ति परिश्रम नहीं करता, उसे यश नहीं मिलता। उसे वीरत्व नहीं प्राप्त होता। इसी कारण अपुरुषार्थ को भयंकर पाप कहा गया है।
()  शीर्षक-पुरुषार्थ का महत्त्व। अथवा, पुरुष हो पुरुषार्थ करो।

8.

मनमोहिनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है।
जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुटहिमालय, वह देश कौन-सा है।

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन-सा है।।
जिसके बड़े रसीले, फल, कंद, नाज, मेवे।
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है।।

जिसके सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है।।
मैदान, गिरि, वनों में, हरियाली है महकती।
आनंदमय जहाँ है, वह देश कौन-सा है।।

 जिसके अनंत वन से धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है।
सबसे प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश का दुलारा, वह देश कौन-सा है।

प्रश्न

(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में कौन-सा देश बसा हुआ है और उसका पद-प्रक्षालन निरंतर कौन कर रहा है?
(ख) भारत की नदियों की क्या विशेषता है?
(ग) भारत के फूलों का स्वरूप कैसा है?
(घ) जगदीश का दुलारा देश भारत संसार का शिरोमणि कैसे है?
() काव्यांश का सार्थक एवं उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

उत्तर-

(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में भारत देश बसा हुआ है। इस देश का पद-प्रक्षालन निरंतर समुद्र कर रहा है।
(ख) भारत की नदियों की विशेषता है कि इनका जल अमृत के समान है तथा ये देश को निरंतर सींचती रहती हैं।
(ग)  भारत के फूल सुंदर व प्यारे हैं। वे दिन-रात हँसते रहते हैं।
(घ) नाना प्रकार के वैभव एवं सुख-समृद्ध से युक्त भारत देश जगदीश का दुलारा तथा संसार-शिरोमणि है, क्योंकि यहीं पर सबसे पहले सभ्यता विकसित हुई और संसार में फैली।
() शीर्षक-वह देश कौन-सा है?

9.

जब कभी मछेरे को फेंका हुआ
फैला जाल
समेटते हुए देखता हूँ
तो अपना सिमटता हुआ
‘स्व’ याद हो आता है-
जो कभी समाज, गाँव और
परिवार के वृहत्तर रकबे में
समाहित था
‘सर्व’ की परिभाषा बनकर
और अब केंद्रित हो
गया हूँ, मात्र बिंदु में।

जब कभी अनेक फूलों पर
बैठी, पराग को समेटती
मधुमक्खियों को देखता हूँ
तो मुझे अपने पूर्वजों की
याद हो आती है,
जो कभी फूलों को रंग, जाति, वर्ग
अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे
और समझते रहे थे कि
देश एक बाग है,
और मधू-मनुष्यता
जिससे जीने की अपेक्षा होती है ।

किंतु अब
बाग और मनुष्यता
शिलालेखों में जकड़ गई है
मात्र संग्रहालय की जड़ वस्तुएँ।

प्रश्न

(क) कविता में प्रयुक्त ‘स्व’ शब्द से कवि का क्या अभिप्राय है? उसकी जाल से तुलना क्यों की गई हैं ?
(ख) कवि के ‘स्व’ में किस तरह का बदलाव आता जा रहा है और क्यों ?
(ग) कवि को अपने पूर्वजों की याद कब और क्यों आती है?
(घ) उसके पूर्वजों की विचारधारा वर्तमान में और भी प्रासंगिक बन गई है, कैसे?
() निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए –
‘…….और मनुष्यता
शिलालेखों में जकड़ गई है।’

उत्तर-

(क) यहाँ ‘स्व’ का अभिप्राय ‘निजता’ से है। इसकी तुलना जाल से इसलिए की गई है, क्योंकि इसमें विस्तार व संकुचन की क्षमता होती है।
(ख) कवि का ‘स्व’ पहले समाज, गाँव व परिवार के बड़े दायरे में फैला था। आज यह निजी जीवन तक सिमटकर रह गया है, क्योंकि अब मनुष्य स्वार्थी हो गया है।
(ग) कवि जब मधुमक्खियों को परागकण समेटते देखता है तो उसे अपने पूर्वजों की याद आती है। उसके पूर्वज रंग, जाति, वर्ग या कबीलों के आधार पर भेद-भाव नहीं करते थे।
(घ) कवि के पूर्वज सारे देश को एक बाग के समान समझते थे। वे मनुष्यता को महत्व देते थे। इस प्रकार उनकी विचारधारा वर्तमान में और भी प्रासंगिक बन गई है।
() इन काव्य-पंक्तियों का अर्थ यह है कि आज के मनुष्य शिलालेखों की तरह जड़, कठोर, सीमित व कट्टर हो गए हैं। वे जीवन को सहज रूप में नहीं जीते।

10.

तू हिमालय नहीं, तू न गंगा-यमुना
तू त्रिवेणी नहीं, तू न रामेश्वरम्
तू महाशील की है अमर कल्पना
देश! मेरे लिए तू परम वंदना।
तू पुरातन बहुत, तू नए से नया
तू महाशील की है अमर कल्पना।
देश! मेरे लिए तू महा अर्चना।
शक्ति-बल का समर्थक रहा सर्वदा,
तू परम तत्व का नित विचारक रहा।

मेघ करते नमन, सिंधु धोता चरण,
लहलहाते सहस्त्रों यहाँ खेत-वन।
नर्मदा-ताप्ती, सिंधु, गोदावरी,
हैं कराती युगों से तुझे आचमन।
शांति-संदेश देता रहा विश्व को।
प्रेम-सद्भाव का नित प्रचारक रहा।
सत्य औ’ प्रेम की है परम प्रेरणा
देश! मेरे लिए तू महा अर्चना।

प्रश्न

(क) कवि का देश को ‘महाशील की अमर कल्पना’ कहने से क्या तात्पर्य है ?
(ख) भारत देश पुरातन होते हुए भी नित नूतन कैसे है?
(ग) ‘तू परम तत्व का नित विचारक रहा’ पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) देश का सत्कार प्रकृति कैसे करती है? काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
() ‘शांति-संदेश ’ रहा’ काव्य-पंक्तियों का अर्थ बताते हुए इस कथन की पुष्टि में इतिहास से कोई एक प्रमाण दीजिए।

उत्तर-

(क) कवि देश को ‘महाशील की अमर कल्पना’ कहता है। इसका अर्थ यह है कि भारत में महाशील के अंतर्गत करुणा, प्रेम, दया, शांति जैसे महान आचरण हैं, जिनके कारण भारत का चरित्र उज्ज्वल बना हुआ है।
(ख) भारत में करुणा, दया, प्रेम आदि पुराने गुण विद्यमान हैं तथा वैज्ञानिक व तकनीकी विकास भी बहुत हुआ है। इस कारण भारत देश पुरातन होते हुए भी नित नूतन है।
(ग) इस पंक्ति का भावार्थ यह है कि भारत ने सदा सृष्टि के परम तत्व की खोज की है।
(घ) प्रकृति देश का सत्कार विविध रूपों में करती है। मेघ यहाँ वर्षा करते हैं, सागर भारत के चरण धोता है। यहाँ लाखों लहलहाते खेत व वन हैं। नर्मदा, ताप्ती, सिंधु, गोदावरी नदियाँ भारत को आचमन करवाती हैं।
() इन काव्य-पंक्तियों का अर्थ यह है कि भारत सदा विश्व को शांति का पाठ पढ़ाता रहा है। यहाँ सम्राट अशोक व गौतम बुद्ध ने संसार को शांति व धर्म का पाठ पढ़ाया।

11.

जब-जब बाँहें झुकीं मेघ की, धरती का तन-मन ललका है,
जब-जब मैं गुजरा पनघट से, पनिहारिन का घट छलका है।

सुन बाँसुरिया सदा-सदा से हर बेसुध राधा बहकी है,
मेघदूत को देख यक्ष की सुधियों में केसर महकी है।
क्या अपराध किसी का है फिर, क्या कमजोरी कहूँ किसी की,
जब-जब रंग जमा महफ़िल में जोश रुका कब पायल का है।

जब-जब मन में भाव उमड़ते, प्रणय श्लोक अवतीर्ण हुए हैं,
जब-जब प्यास जमी पत्थर में, निझर स्रोत विकीर्ण हुए हैं।
जब-जब गूंजी लोकगीत की धुन अथवा आल्हा की कड़ियाँ,
खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।

प्रश्न

(क) मेघों के झुकने का धरती पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(ख) राधा कौन थी ? उसे ‘बेसुध’ क्यों कहा है?
(ग) मन के भावों और प्रेम-गीतों का परस्पर क्या संबंध है ? इनमें से कौन किस पर आश्रित है?
(घ) काव्यांश में झरनों के अनायास फूट पड़ने का क्या कारण बताया गया है?
() आशय स्पष्ट कीजिए-खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।

उत्तर-

(क) मेघों के झुकने पर धरती का तन-मन ललक है, क्योंकि मेघों से बारिश होती है और इससे धरती पर खुशाँ फैलती हैं ।
(ख) राधा कृष्ण की आराधिका थी। वह कृष्ण की बाँसुरी की मधुर तान पर मुग्ध थी। वह हर समय उसमें ही खोई रहती थी। इस कारण उसे बेसुध कहा गया है।
(ग) प्रेम का स्थान मन में है। जब मन में प्रेम उमड़ता है तो कवि प्रेम-गीतों की रचना करता है। प्रेम-गीत मन के भावों पर आश्रित होते हैं।
(घ) जब-जब पत्थरों के मन में प्रेम की प्यास जागती है, तब-तब उसमें से झरने फूट पड़ते हैं।
() इसका अर्थ यह है कि खेतों में हरी-भरी फसलें लहलहाने पर कृषक-बालिकाएँ प्रसन्न हो जाती हैं। उनके चेहरे खुशी से दमक उठते हैं।

12.

क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-घन के नर्तन,
मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।

मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए ।
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे, जीवन के उत्थान-पतन।

आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये जग के खंडन-मंडन।
मैं अटका कब, कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल।
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल।

मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं, अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।

प्रश्न

(क) उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर कवि के स्वभाव की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) कविता में आए मे, विद्युत, सागर की गर्जना औरज्वालामुखी किनके प्रतीक हैं ? कवि ने उनकासंयोजन यहाँ क्यों किया है ?
(ग) ‘शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने कभी चयन’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘युग की प्राचीर’ से क्या तात्पर्य है? उसे कमजोर क्यों बताया गया है?
() किन पंक्तियों का आशय है-तन-मन में दृढ़ निश्चय का नशा हो तो जीवन-मार्ग में बढ़ते रहने से कोई नहीं रोक सकता।

उत्तर-

(क) कवि के स्वभाव की दो विशेषताएँ हैं-(क) गतिशीलता। (ख) साहस व संघर्षशीलता।
(ख) मेघ, विद्युत, सागर की गर्जना व ज्वालामुखी जीवन-पथ में आने वाली बाधाओं के परिचायक हैं। कवि इनका संयोजन इसलिए करता है ताकि अपनी संघर्षशीलता व साहस को दर्शा सके।
(ग) इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि ने हमेशा चुनौतियों से पूर्ण कठिन मार्ग चुना है। वह सुख-सुविधापूर्ण जीवन त्यागकर संघर्ष करते हुए जीना चाहता है।
(घ) इसका अर्थ है-समय की बाधाएँ। कवि कहता है कि संकल्पवान व्यक्ति बाधाओं व संकटों को अपने साहस एवं संघर्ष से जीत लेते हैं। इसी कारण वे कमजोर कमज़ोर हैं।
() ये पंक्तियाँ हैं –
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।

13.

यह मजूर, जो जेठ मास के इस निधूम अनल में
कर्ममग्न है अविचल अविकल दग्ध हुआ पल-पल में;
यह मजूर, जिसके अंगों पर लिपटी एक लँगोटी,
यह मजूर, जर्जर कुटिया में जिसकी वसुधा छोटी,
किस तप में तल्लीन यहाँ है भूख-प्यास को जीते,
किस कठोर साधना में इसके युग-के-युग हैं बीते!

कितने महा महाधिप आए, हुए विलीन क्षितिज में,
नहीं दृष्टि तक डाली इसने, निर्विकार यह निज में।
यह अविकप न जाने कितने घूंट पिए है विष के,
आज इसे देखा जब मैंने बात नहीं की इससे।
अब ऐसा लगता है, इसके तप से विश्व विकल है,
नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।

प्रश्न

(क) जेठ के महीने में मजदूर को देखकर कवि क्या अनुभव कर रहा है?
(ख) उसकी दीन-हीन दशा को कवि ने किस तरह प्रस्तुत किया है?
(ग) उसका पूरा जीवन कैसे बीता है? उसने बड़े-से-बड़े लोगों को भी अपना कष्ट क्यों नहीं बताया?
(घ) उसने जीवन कैसे जिया है ? उसकी दशा को देखकर कवि को किस बात का आभास होने लगा है?
() आशय स्पष्ट कीजिए :
‘नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।’

उत्तर-

(क) जेठ के महीने में काम करते मजदूर को देखकर कवि अनुभव करता है कि वह अपने काम में मग्न है। गरम मौसम भी उसके कार्य को बाधित नहीं कर पा रहा है।
(ख) कवि बताता है कि मजदूर की दशा दयनीय है। वह सिर्फ़ एक लैंगोटी पहने हुए है। उसकी कुटिया टूटी-फूटी है। वह पेट भरने लायक भी नहीं कमा पाता।
(ग) मज़दूर का पूरा जीवन तंगहाली में बीता है। उसने बड़े-से-बड़े लोगों को भी अपना कष्ट नहीं बताया, क्योंकि वह , जागरूक नहीं था। वह अपने काम में तल्लीन रहता था।
(घ) मज़दूर ने सारा जीवन विष के घूंट पीकर जिया है। वह सदा अभावों से ग्रस्त रहा है। उसकी दशा देखकर कवि को लगता है कि मजदूर की तपस्या से सारा संसार विकल है।
() इस काव्य पंक्ति का आशय यह है कि मजदूर के कठोर तप से यह लगता है कि उसे नया इंद्रपद मिलेगा। कवि को लगता है कि अब उसकी हालत में सुधार होगा।

14.

मुक्त करो नारी को, मानव !
चिर बंदिनी नारी को,
युग-युग की बर्बर कारा से
जननी, सखी, प्यारी को !
छिन्न करो सब स्वर्ण-पाश ।
उसके कोमल तन-मन के,
वे आभूषण नहीं, दाम
उसके बंदी जीवन के !
उसे मानवी का गौरव दे
पूर्ण सत्व दो नूतन,

उसका मुख जग का प्रकाश हो,
उठे अंध अवगुंठन।
मुक्त करो जीवन–संगिनी को,
जननी देवी को आदृत
जगजीवन में मानव के संग
हो मानवी प्रतिष्ठित !
प्रेम–स्वर्ग हो धरा, मधुर
नारी महिमा से मंडित,
नारी-मुख की नव किरणों से
युग–प्रभात हो ज्योतित !

प्रश्न

(क) कवि नारी को किस दशा से मुक्त कराना चाहता है? वह उसके भिन्न-भिन्न रूपों का उल्लेख क्यों कर रहा है?
(ख) कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन न मानकर उन्हें किन रूपों में देख रहा है?
(ग) वह नारी को किन दी गरिमाओं से मंडित करा रहा है और क्या कामना कर रहा है?
(घ) वह मुक्त नारी को किन-किन रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है?
() आशय स्पष्ट कीजिए :
नारी-मुख की नव किरणों से
युग-प्रभात हो ज्योतित !

उत्तर-

(क) कवि नारी को पुरुष के बंधन से मुक्त कराना चाहता है। वह उसके जननी, सखी व प्रिया रूप का उल्लेख करता है, क्योंकि पुरुष का संबंध उसके साथ माँ दोस्त व पत्नी के रूप में होता है।
(ख) कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन नहीं मानता। वह उन्हें नारी की स्वतंत्रता की कीमत मानता है।
(ग) कवि नारी को मानवी तथा मातृत्व की गरिमाओं से मंडित कर रहा है। वह कामना करता है कि उसे पुरुष के समान दर्ज़ा मिले।
(घ) कवि मुक्त नारी को मानवी, युग को प्रकाश देने वाली आदि रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है।
() इन काव्य पंक्तियों का आशय यह है कि नारी के नए रूप से नए युग का प्रभात प्रकाशित हो। अर्थात नारी अपने कार्यों से समाज को दिशा दे।

15.

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए, एक हिलोर उधर से आए।
प्राणों के लाले पड़ जाएँ त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए |
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए।

बरसे आग, जलद जल जाए, भस्मसात् भूधर हो जाए,
पाप-पुण्य सदसद् भावों की धूल उड़े उठ दायें-बायें।
नभ का वक्षस्थल फट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ।
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।

प्रश्न

(क) कवि की कविता क्रांति लाने में कैसे सहायक हो सकती है?
(ख) कवि के द्वारा किस प्रकार की उथल-पुथल चाही गई है?
(ग) आपके विचार से नाश और सत्यानाश में क्या अंतर हो सकता है? कवि उनकी कामना क्यों करता है?
(घ) किसी समाज में फैली जड़ता और रूढ़िवादिता क्रांति से ही दूर हो सकती है-पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
() काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तर-

(क) कवि अपनी कविता के माध्यम से लोगों में जागरूकता पैदा करता है। वह अपने संदेशों से जनता को कुशासन समाप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
(ख) कवि के द्वारा ऐसी उथल-पुथल की चाह की गई है, जिससे समाज में बुरी ताकतें पूर्णतया नष्ट हो जाएँ।
(ग) हमारे विचार से ‘नाश’ से सिर्फ़ बुरी ताकतें समाप्त हो सकती हैं, परंतु ‘सत्यानाश’ से सब कुछ नष्ट हो जाता है। इसमें अच्छी ताकतें भी समाप्त हो जाती हैं। कवि ऐसा करके बुरी ताकतों के बचने की किसी भी संभावना को छोड़ना नहीं चाहता।
(घ) यह बात बिलकुल सही है कि समाज में फैली जड़ता व रूढ़िवादिता केवल क्रांति से ही दूर हो सकती है। क्रांति से वर्तमान में चल रही व्यवस्था नष्ट हो जाती है तथा नए विचारों को पनपने का अवसर मिलता है।
() लाले पड़ना-महँगाई के कारण गरीबों को रोटी के लाले पड़ने लगे हैं।
छा जाना-बिजेंद्र पदक जीतकर देश पर छा गया।

16.

यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ!
है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन
ममता की शीतल छाया में होता कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन
होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ
यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ!

प्रश्न

(क) ‘फूल बोने’ और ‘काँटे बोने” का प्रतीकार्थ क्या है?
(ख) मन किन स्थितियों में अशांत होता है और कैसी स्थितियाँ उसे शांत कर देती हैं?
(ग) संकट आ पड़ने पर मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए और क्यों?
(घ) मन में कटुता कैसे आती है और वह कैसे दूर हो जाती है?
() काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर वाक्य-प्रयोग कीजिए।

उत्तर-

(क) ‘फूल बोने’ का अर्थ है-‘अच्छे कार्य करना’ तथा ‘काँटे बोने’ का अर्थ है-‘बुरे कार्य करना’।
(ख) मन में विरोध की भावना के उदय होने के कारण अशांति का उदय होता है। ममता की शीतल छाया उसे शांत कर देती है।
(ग) संकट आ पड़ने पर मनुष्य को भयभीत नहीं होना चाहिए। उसे अपना मन मजबूत करना चाहिए तथा मुस्कराना चाहिए।
(घ) मन में कटुता तब आती है, जब मनुष्य को सफलता नहीं मिलती। वह भटकता रहता है। स्नेह से यह कटुता स्वयं दूर हो जाती है।
() काँटे बोना- हमें दूसरों के लिए काँटे नहीं बोने चाहिए।
घुल जाना- विदेश में गए पुत्र की खोज-खबर न मिलने पर विक्रम घुल गया है।

17.

पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा,
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है,

बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है,
फिर अंत समय तूही इसे अचल देख अपनाएगी।
हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।

प्रश्न

(क) यह काव्यांश किसे संबोधित है ? उससे हम क्या पाते हैं ?
(ख) ‘प्रत्युपकार’ किसे कहते हैं? देश का प्रत्युपकार क्यों नहीं हो सकता?
(ग) शरीर-निर्माण में मातृभूमि का क्या योगदान है?
(घ) ‘अचल’ विशेषण किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और क्यों?
() देश से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है, स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) यह काव्यांश मातृभूमि को संबोधित है। मातृभूमि से हम जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ पाते हैं।
(ख) किसी से वस्तु प्राप्त करने के बदले में कुछ देना ‘प्रत्युपकार’ कहलाता है। मातृभूमि का प्रत्युपकार इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा कुछ-न-कुछ मातृभूमि से प्राप्त करता रहता है।
(ग) मातृभूमि से ही मनुष्य का शरीर बना है। जल, हवा, आग, भूमि व आकाश-मातृभूमि में ही मिलते हैं।
(घ) ‘अचल’ विशेषण मानव के मृत शरीर के लिए प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि मृत शरीर गतिहीन होता है।
() मनुष्य का शरीर मातृभूमि और इसके तत्वों-वायु, जल, अग्नि, भूमि और आकाश-से मिलकर बनता है और अंतत: मातृभूमि में ही मिल जाता है।
इस तरह हम कह सकते हैं कि मातृभूमि से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है।

18.

क्षमामयी तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी दुखहनी है,
भयनिवारिणी, शांतिकारिणी, सुखकर्नी,

हे शरणदायिनी देवि तू करती सबका त्राण है।
हे मातृभूमि, संतान हम, तू जननी, तू प्राण है ।

प्रश्न

(क) इस काव्यांश में किसे संबोधित किया गया है ? उसे क्षमामयी क्यों कहा गया है?
(ख) वात्सल्य किसे कहते हैं? मातृभूमि ‘वात्सल्यमयी’ कैसे है?
(ग) मातृभूमि को ‘विभवशालिनी’ और ‘विश्वपालिनी’ क्यों कहा गया है?
(घ) शरणदायिनी कौन है? यह भूमिका वह कैसे निभाती है?
() कवि देश और देशवासियों में परस्पर क्या संबंध मानता है ?

उत्तर-

(क) इस काव्यांश में मातृभूमि को संबोधित किया गया है। मातृभूमि मानव की गलतियों को सदैव क्षमा करती है, इस कारण उसे ‘क्षमामयी’ कहा
गया है।
(ख) बच्चे के प्रति माँ के प्रेम को ‘वात्सल्य’ कहते हैं। मातृभूमि मनुष्य की देखभाल माँ की तरह करती है, इसी कारण उसे ‘वात्सल्यमयी’ कहा गया है।
(ग) मातृभूमि से हमें अनेक संसाधन मिलते हैं। इन संसाधनों से मनुष्य का विकास होता है। पृथ्वी से ही अन्न, फल आदि मिलते हैं। इस कारण मातृभूमि को ‘विभवशालिनी’ व ‘विश्वपालिनी’ कहा जाता है।
(घ) शरणदायिनी मातृभूमि है। सभी प्राणी इसी पर आवास बनाते हैं।
() कवि कहता है कि देशवासी के कार्य देश को महान बनाते हैं तथा देश ही उनकी रक्षा करता है और नागरिकों को अपना नाम देता है।

19.

चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बड़ी है, निर्मम है,
वहाँ हवा में उसे
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
बाहर दाने का टोटा है

यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिये का डर है
यहाँ निद्र्वद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी
पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी,
हर सू जोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

प्रश्न

(क) पिंजड़े के बाहर का संसार निर्मम कैसे है?
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
(ग) कवि चिड़िया को स्वतंत्र जगत की किन वास्तविकताओं से अवगत कराना चाहता है?
(घ) बाहर सुखों का अभाव और प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति ही क्यों चाहती है?
() कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) पिंजड़े के बाहर का संसार हमेशा कमजोर को सताने की कोशिश में रहता है। यहाँ कमजोर को सदैव संघर्ष करना पड़ता है। इस कारण वह निर्मम है।
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है।
(ग) कवि बताना चाहता है कि बाहर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भोजन, आवास व सुरक्षा के लिए हर समय मेहनत करनी होती है।
(घ) बाहर सुखों का अभाव व प्राणों संकटहोने पर भी चिड़िया मुक्ति चाहती है, क्योंकि वह आज़ाद जीवन जीना पसंद करती है।
() इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता के महत्त्व को समझाया है। मनष्य के व्यक्तित्व का विकास स्वतंत्र परिवेश में ही हो सकता है।

20.

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली।
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की।
बरस बाद सुधि लीन्हीं-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।

प्रश्न

(क) उपर्युक्त काव्यांश में ‘पाहुन’ किसे कहा गया है और क्यों?
(ख) मेघ किस रूप में और कहाँ आए?
(ग) मेघ के आने पर गाँव में क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देने लगे ?
(घ)
 पीपल को किसके रूप में चित्रित किया गया है? उसने क्या किया?
()‘लता’ कौन है? उसने क्या शिकायत की?

उत्तर-

(क) मेघ को ‘पाहुन’ कहा गया है, क्योंकि वे बहुत दिन बाद लौटे हैं और ससुराल में पाहुन की भाँति उनका स्वागत हो रहा है।
(ख) मेघ मेहमान की तरह सज-सँवरकर गाँव में आए।
(ग) मेघ के आने पर गाँव के घरों के दरवाजे व खिड़कियाँ खुलने लगीं। पेड़ झुकने लगे, आँधी चली और धूल ग्रामीण बाला की भाँति भागने लगी।
(घ) पीपल को गाँव के बूढ़े व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उसने नवागंतुक का स्वागत किया।
(‘लता’ नवविवाहिता है, जो एक वर्ष से पति की प्रतीक्षा कर रही है। उसे शिकायत है कि वह (बादल) पूरे एक साल बाद लौटकर आया है।

21.

ले चल माँझी मझधार मुझे, दे-दे बस अब पतवार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे ॥
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कैंटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।

मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलें।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।

फिर कहाँ डरा पाएगा यह, पगले जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रहकर प्यार मुझे।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ, उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा, जी चाहे जीतें हार चलूँ।

जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे-
राहों को समझा लेता हूँ, सब बात सदा अपने मन की
इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रहकर प्यार मुझे।

प्रश्न

(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए।
(ख) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है?
(ग) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
(घ) कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
()आशय स्पष्ट कीजिए-“कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की।”

उत्तर-

(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) कवि कहीं भी रहे उसे हार-जीत की परवाह नहीं रहती।
(2) कवि को किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है।
(ख) यह पंक्ति है
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
(ग) इस कविता में कवि जीवन-पथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने, आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रुकने के लिए कहता है।
(घ) कवि का स्वभाव निभाँक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है।
() इसका अर्थ यह है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।

22.

पथ बंद है पीछे अचल है पीठ पर धक्का प्रबल।
मत सोच बढ़ चल तू अभय, प्ले बाहु में उत्साह-बल।
जीवन-समर के सैनिको, संभव असंभव को करो
पथ-पथ निमंत्रण दे रहा आगे कदम, आगे कदम।

ओ बैठने वाले तुझे देगा न कोई बैठने।
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्यान देगा लेटने ।
आराम संभव है नहीं, जीवन सतत संग्राम है
बढ़ चल मुसाफ़िर धर कदम, आगे कदम, आगे कदम।

ऊँचे हिमानी श्रृंग पर, अंगार के भ्रू-भृग पर
तीखे करारे खंग पर आरंभ कर अद्भुत सफ़र
ओ नौजवाँ निर्माण के पथ मोड़ दे, पथ खोल दे
जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम।

प्रश्न

(क) इस काव्यांश में कवि किसे क्या प्रेरणा दे रहा है?
(ख) किस पंक्ति का आशय है-‘जीवन के युद्ध में सुख-सुविधाएँ चाहना ठीक नहीं’?
(ग) अद्भुत सफ़र की अद्भुतता क्या है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘ जीवन सतत संग्राम है।’
() कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।

उत्तर-

(क) इस काव्यांश में कवि मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।
(ख) उक्त आशय प्रकट करने वाली पंक्ति है- 
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्या न देगा लेटने।
(ग) कवि के अद्भुत सफ़र की अद्भुतता यह है कि यह सफ़र हिम से ढँकी ऊँची चोटियों पर, ज्वालामुखी के लावे पर तथा तीक्ष्ण तलवार की धार पर भी जारी रहता है।
(घ) इसका आशय यह है कि जीवन युद्ध की तरह है, जो निरंतर चलता रहता है। मनुष्य सफलता पाने के लिए बाधाओं से निरंतर संघर्ष करता रहता है।
() इस कविता में कवि ने जीवन को संघर्ष से युक्त बताया है। मनुष्य को बाधाओं से संघर्ष करते हुए जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

23.

रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी जमीन, जिसका श्रम है;
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है।
आज़ादी है अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आज़ादी है अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल,
सिमटी बाँहों को खोल गरुड़, उड़ने का अब अंदाज बदल।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं;
रोटी क्या ? ये अंबर वाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।

प्रश्न

(क) आजादी क्यों आवश्यक है?
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर किसका अधिकार है ?
(ग) कवि ने किन पंक्तियों में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है?
(घ) कवि व्यक्ति को क्या परामर्श देता है?
() आज़ाद व्यक्ति क्या कर सकता है?

उत्तर-

(क) परिश्रम का फल पाने तथा शोषण का विरोध करने के लिए आजादी आवश्यक है।
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर उसका अधिकार है, जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है।
(ग) कवि ने ” गौरव की भाषा नई सीख, भिखमंगों-सी आवाज बदल।” पंक्ति में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है।
(घ) कवि व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने और उसके बल पर सफलता पाने का परामर्श देता है।
() आज़ाद व्यक्ति शोषण का विरोध कर सकता है, पहाड़ हिला सकता है तथा आकाश से तारे तोड़कर ला सकता है।

24.

खुलकर चलते डर लगता है
बातें करते डर लगता है

क्योंकि शहर बेहद छोटा है।

ऊँचे हैं, लेकिन खजूर से
मुँह है इसीलिए कहते हैं,
जहाँ बुराई फूले-पनपे-
वहाँ तटस्थ बने रहते हैं,
नियम और सिद्धांत बहुत
दंगों से परिभाषित होते हैं-
जो कहने की बात नहीं है,
वही यहाँ दुहराई जाती,
जिनके उजले हाथ नहीं हैं,
उनकी महिमा गाई जाती
यहाँ ज्ञान पर, प्रतिभा पर
अवसर का अंकुश बहुत कड़ा है
सब अपने धंधे में रत हैं
यहाँ न्याय की बात गलत है

क्योंकि शहर बेहद छोटा है।

बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है
उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है,
जो सारे काम गलत करता है।
यहाँ मान के नाप-तौल की
इकाई कंचन है, धन है
कोई सच के नहीं साथ है
यहाँ भलाई बुरी बात है

क्योंकि शहर बेहद छोटा है।

प्रश्न

(क) कवि शहर को छोटा कहकर किस ‘ छोटेपन ‘ को अभिव्यक्त करता चाहता है ?
(ख) 
इस शहर के लोगों की विशेषताएँ क्या हैं ?
(ग)
  आशय समझाइए :
         बुद्धि यहाँ पानी भरती है,
सीधापन भूखों मरता है-
(घ)  इस शहर में असामाजिक तत्व और धनिक क्या-क्या प्राप्त करते हैं?
(
 ‘जिनके उजले हाथ नहीं हैं”-कथन में ‘हाथ उजले न होना’ से कवि का क्या आशय है? [CBSE (Delhi), 2013]

उत्तर-

(क) कवि शहर को छोटा कहकर लोगों की संकीर्ण मानसिकता, उनके स्वार्थपूर्ण बात-व्यवहार, बुराई का प्रतिरोध न करने की भावना, अन्याय के प्रति तटस्थता जैसी बुराइयों में लिप्त रहने के कारण उनके छोटेपन को अभिव्यक्त करना चाहता है।
(ख) इस शहर के लोग बुराई का विरोध न करके तटस्थ बने रहते हैं। अर्थात वे बुराई के फैलने का उचित वातावरण प्रदान करते हैं।
(ग) इन पंक्तियों का आशय यह है कि बुद्धमान लोग धनिकों के गुलाम बनकर रह गए हैं। वे वही काम करते हैं जो सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति करवाना चाहते हैं। यहाँ सीधेपन का कोई महत्त्व नहीं है। यहाँ वही व्यक्ति सम्मानित होता है जो हिंसा, आतंक से भय का वातावरण बनाए रखता है।
(घ) इस शहर में असामाजिक तत्त्व और धनिक प्रतिष्ठा तथा मान-सम्मान प्राप्त करते हैं।
() ‘ जिनके उजले हाथ नहीं हैं ‘ कथन में ‘हाथ उजले न होने’ का आशय है
अनैतिक, अमर्यादित, अन्यायपूर्वक कार्य करना तथा गलत तरीके एवं बेईमानी से धन, मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करके दूसरों का शोषण करने जैसे कार्यों में लिप्त रहना।

25.

अचल खड़े रहते जो ऊँचा शीश उठाए तूफानों में,
सहनशीलता, दृढ़ता हँसती जिनके यौवन के प्राणों में।
वही पंथ बाधा को तोड़े बहते हैं जैसे हों निझर,
प्रगति नाम को सार्थक करता यौवन दुर्गमता पर चलकर।
आज देश की भावी आशा बनी तुम्हारी ही तरुणाई,
नए जन्म की श्वास तुम्हारे अंदर जगकर है लहराई।
आज विगत युग के पतझर पर तुमको नव मधुमास खिलाना,
नवयुग के पृष्ठों पर तुमको है नूतन इतिहास लिखाना।
उठो राष्ट्र के नवयौवन तुम दिशा-दिशा का सुन आमंत्रण,
जगो, देश के प्राण जगा दो नए प्राप्त का नया जागरण।
आज विश्व को यह दिखला दो हममें भी जागी। तरुणाई,
नई किरण की नई चेतना में हमने भी ली ऑगड़ाई।

प्रश्न

(क) मार्ग की रुकावटों को कौन तोड़ता है और कैसे?
(ख) नवयुवक प्रगति के नाम को कैसे सार्थक करते हैं?
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ से क्या आशय है?
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान क्यों कर रहा है?
(कविता का मूल संदेश अपने शब्दों में लिखिए।  [CBSE (Delhi), 2014]

उत्तर-

(क)  मार्ग की रुकावटों को वे तोड़ते हैं जो संकटों से घबराए बिना उनका सामना करते हैं। ऐसे लोग अपनी मूल रिदृढ़ता से जवना में आने वाले संक्टरूपा तुमानों का निहारता से मुकबल कते हैं और विजयी होते हैं।
(ख) जिस प्रकार झरना अपने वेग से अपने रास्ते में आने वाली चट्टानों और पत्थरों को तोड़कर आगे निकल जाता है, उसी प्रकार नवयुवक भी बाधाओं को जीतकर आगे बढ़ते हैं और प्रगति के नाम को स्रार्थक करते हैं।
(ग) ‘विगत युग के पतझर’ का आशय है-बीता हुआ वह समय जब देश के लोग विशेष सफलता और उपलब्धियाँ अर्जित नहीं कर पाए।
(घ) कवि देश के नवयुवकों का आहवान इसलिए कर रहा है क्योंकि नवयुवक उत्साह, साहस, उमंग से भरे हैं। उनके स्वभाव में निडरता है। वे बाधाओं से हार नहीं मानते। उनका यौवन देश की आशा बना हुआ है। वे देश को प्रगति के पथ पर ले जाने में समर्थ हैं।
() कवि नवयुवकों का आहवान कर रहा है कि वे देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के लिए आगे आएँ। उनका यौवन दुर्गम पथ पर विपरीत परिस्थितियों में उन्हें विजयी बनाने में सक्षम है। देशवासी उन्हें आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं। अब समय आ गया है कि वे अपने यौवन की ताकत दुनिया को दिखा दें।

26.

आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र, कहाँ इस जग में?
नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
कुछ तनिक ध्यान से सोची, धरती किसकी हो पाई?
बोलो युग-युग तक किसने, किसकी विरुदावलि गाई?
मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है।
जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है।
सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है।
पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल-पौरुष का संगम है।
दुर्बल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता,
वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता।
फिर क्या विषाद, भय, चिंता, जो होगा सब सह लेंगे,
परिवर्तन की लहरों में जैसे होगा बह लेंगे।

प्रश्न

(क) कविता का मूल संदेश क्या है?
(ख) ‘रोने से दुर्भाग्य सौभाग्य में नहीं बदल जाता’ के भाव की पंक्तियाँ छाँटकर लिखिए।
(ग) समय किसे नष्ट कर देता है और कैसे?
(घ) इतिहास किसे याद रखता है और क्यों?
() ‘मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। [CBSE (Foreign), 2014)]

उत्तर-

(क) कविता का मूल संदेश यह है कि हमें अपनी दुर्बलता त्यागकर सबल बनना चाहिए। व्यक्ति अपनी कोई पहचान नहीं छोड़ पाते, जबकि वीरों और सबलों की कीर्ति धरती पर गूँजती रहती है।
(ख) उक्त भाव प्रकट करने वाली पंक्तियाँ हैं
आँसू से भाग्य पसीजा है, हे मित्र, कहाँ इस जग में?
नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
(ग) समय कमजोर व्यक्तियों को नष्ट कर देता है। कमजोर व्यक्ति अपनी कायरता और दुर्बलता के कारण कोई ऐसा महत्वपूर्ण काम नहीं कर पाते, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें याद रखें। इसके अलावा साहसपूर्ण काम न करने वाले लोग आसानी से भुला दिए जाते हैं।
(घ) इतिहास उन लोगों को याद रखता है, जिनमें बल और पुरुषार्थ का संगम होता है। इतिहास उन्हें इसलिए याद रखता है क्योंकि वे अपनी वीरता और साहस से याद रखने वाले काम करते हैं तथा अपने इसी गुण के कारण वे विपरीत परिस्थितियों में भी जिंदा बने रहते हैं।
() ‘मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है’-पंक्ति का भाव यह है अच्छे दिन सदैव नहीं रहते। मनुष्य के जीवन में बुरे दिन भी आते हैं। इस तरह जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है।

27.

मैंने गढ़े
ताकत और उत्साह से
भरे-भरे
कुछ शब्द
जिन्हें छीन लिया मठाधीशों ने
दे दिया उन्हें धर्म का झंडा
उन्मादी हो गए
मेरे शब्द।
तलवार लेकर
मिटाने लगे
खाद-पानी से
फिर रचे मैंने
इंसानियत से लबरेज
ढेर सारे शब्द।
नहीं छीन पाएगा उन्हें
छीनने की कोशिश में भी
गिर ही जाएँगे कुछ दाने
और समय आने पर
फिर उगेंगे

अबकी उन्हें अगवा कर लिया
सफ़ेदपोश लुटेरों ने
और दबा दिया उन्हें
कुर्सी के पाये तले
असहनीय दर्द से चीख रहे हैं
मेरे शब्द और वे
कर रहे हैं अट्ठहास।
अब मैं गढ़ेंगी
बोऊँगी उन्हें
निराई गुड़ाई और
अपना ही वजूद
लहलहा उठेगी फसल
तब कोई मठाधीश
कोई लुटेरा
एक बार
दो बार
लगातार उगेंगेबार-बार
वे मेरे शब्द।

प्रश्न

(क) ‘मठधीशों’ ने उत्साह भरे शब्दों को क्यों छीना होगा?
(ख) ‘तलवार’ शब्द यहाँ किस ओर संकेत कर रहा है?
(ग) आशय समझाइए कुर्सी के पाये तले-दर्द से चीख रहे हैं।
(घ) कवयित्री किस उम्मीद से शब्दों को बो रही है?
() ‘और वे कर रहे हैं अट्ठहास’ में ‘वे’ शब्द किनके लिए प्रयुक्त हुआ है? [CBSE Sample Paper 2015]

उत्तर-

(क) मठाधीशों ने उत्साह-भरे शब्दों को इसलिए छीना होगा ताकि वे उनका दुरुपयोग करते हुए भोले-भाले लोगो को बहकाएँ और उनमें धार्मिक उन्माद पैदा कर सकें।
(ख) यहाँ ‘ तलवार ‘ द्वारा आना ही वह मानेक कर्य किया गया है अत यहा “आयात को ओ सीता कर रहा ह।
(ग)  आशय यह है कि समाज के तथाकथित लुटेरों ने कवयित्री द्वारा गढ़े गए ताकत और उत्साह से भरे शब्दों का दुरुपयोग सत्ता पाने के लिए किया और लोग उन शब्दों के भ्रम में आ गए।
(घ) कवयित्री शब्दों को इसलिए बो रही है ताकि वे समाज में खूब फैलें। उसे उम्मीद है कि ये शब्द समय आने पर अपने सही अर्थ की अभिव्यक्ति करेंगे।
() ‘वे कर रहे हैं अट्ठहास’ में ‘वे’ शब्द समाज के सफ़ेदपोश लुटेरों के लिए प्रयुक्त हुआ है।

28.

पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे?
लहू गर्म करने को रक्खो मन में ज्वलित विचार,
हिंस्र जीव से बचने को चाहिए किंतु तलवार।
एक भेद है और, जहाँ निर्भय होते नर-नारी

कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी
जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,
बातों में बिजली होती, होते दिमाग में गोले।
जहाँ लोग पालते लहू में हालाहल की धार
क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में हुई नहीं तलवार?

प्रश्न

(क) कलम किस बात की प्रतीक है?
(ख) तलवार की आवश्यकता कहाँ पड़ती है?
(ग) लहू को गर्म करने से कवि का क्या आशय है?
(घ) कैसे व्यक्ति को तलवार की आवश्यकता नहीं होती?
() तलवार कब अपरिहार्य हो जाती है? [CBSE (Delhi), 2015]

उत्तर-

(क) कलम व्यक्ति में ओजस्वी और क्रांतिकारी विचार उत्पन्न करने के साधन का प्रतीक है जिससे व्यक्ति की दीनता-हीनता नष्ट हो जाती है।
(ख) जहाँ लोग क्रांतिकारी विचारों से दूरी रखते हैं; साहस, उत्साह से हीन होते हैं; वाणी में दीनता और व्यवहार में ल्किता है जो लोक कल्ममेंआपाउलों की ताकता नाटह चुकहैव लरिक आवयकता पडती है।
(ग) लहू को गर्म रखने का तात्पर्य है-मन में जोश, उत्साह और उमंग बनाए रखते हुए क्रांतिकारी विचार रखना।
(घ) जो व्यक्ति निर्भय होता है, जिस व्यक्ति के विचारों में क्रांति की ज्वाला फूटती है, अन्याय अत्याचार को न सहने की प्रबल भावना होती है तथा जिसमें अपने राष्ट्र के प्रति बलिदान की उत्कट भावना होती है उसे तलवार की आवश्यकता नहीं पड़ती।
() तलवार तब अपरिहार्य बन जाती है जब अत्याचार, अन्याय तथा राष्ट्र के प्रति कुदृष्टि रखने वाले शत्रुरूपी हिंसक जीव से अपना बचाव करना होता है तथा प्रेम, सद्भाव आदि को दुर्बलता समझकर उनका अनुचित फायदा उठाया जाता है।

स्वयं करें

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए 

1.

यहाँ कोकिला नहीं, काक हैं शोर मचाते।
काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से।
वे पौधे, वे पुष्प, शुष्क हैं अथवा झुलसे॥
परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है।
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
वायु चले पर मंद चाल से उसे चलाना।
दुख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना।
कोकिल गाए, किंतु राग रोने का गाए।
भ्रमर करे गुंजार, कष्ट की कथा सुनाए।
लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले।
हो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले॥

किंतु न तुम उपहार भाव आकर दरसाना।
स्मृति की पूजा-हेतु यहाँ थोड़े बिखराना॥
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा—खाकर।
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर॥
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं।
अपने प्रिय परिवार, देश से भिन्न हुए हैं।
कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना।
करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना॥
तड़प-तड़पकर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर॥
यह सब करना किंतु बहुत धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान, यहाँ मत शोर मचाना।

प्रश्न

(क) कवि ने बाग की क्या दशा बताई है?
(ख) कवि ऋतुराज को धीरे से आने की सलाह क्यों देता है?
(ग) ऋतुराज को क्या-क्या न लाने के लिए कहा गया है?
(घ) ‘कोमल बालक………  खा-खाकर’ पंक्ति से किस घटना का पता चलता है?
() शुष्क पुष्प कहाँ गिराने की बात कही गई है तथा क्यों?

2.

स्नेह निझर बह गया है।
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है ”अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-
जीवन दह गया है।”
दिए हैं मैंने जगत को फूल-फल

पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल—
ठाठ जीवन का वही,
जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम, तृण पर बैठने को, निरुपमा
बह रही है हृदय पर केवल अमा,
मैं अलक्षित हूँ, यही
कवि कह गया है।

प्रश्न

(क) कवि ने यह क्यों कहा कि ‘स्नेह-निझर बह गया है”?
(ख) ‘ मैं वह ……….  जिसका अर्थ।’-पंक्ति का भाव बताइए।
(ग) कवि ने अपने जीवन में समाज को क्या दिया था?
(घ) वृद्धावस्था में कवि की क्या दशा है?
() कवि स्वयं को अलक्षित क्यों कहता है?

3.

एक फ़ाइल ने दूसरी फ़ाइल से कहा
बहन लगता है
साहब हमें छोड़कर जा रहे हैं
इसीलिए तो सारा काम
जल्दी-जल्दी निपटा रहे हैं।
मैं बार-बार सामने जाती हूँ
रोती हूँ, गिड़गिड़ाति हूँ
करती हूँ विनती हर बार
साहब जी ! इधर भी देख लो एक बार।
दूसरी फ़ाइल ने उसे
प्यार से समझाया
जीवन का नया फ़लसफ़ा सिखाया
बहन! हम यूँ ही रोते हैं
बेकार  गिड़गिड़ाते हैं
लोग आते हैं, जाते हैं
हस्ताक्षर कहाँ रुकते हैं
हो ही जाते हैं।
पर कुछ बातें ऐसी होती हैं

कभी मुझे नीचे पटक देते हैं
कभी पीछे सरका देते हैं
और कभी-कभी तो
फ़ाइलों के ढेर तले
दबा देते हैं।
अधिकारी बार-बार
डरते-डरते पूछ जाता है
साहब कहाँ गए ……….   ?
पर साहब हैं कि ……….   ?
हस्ताक्षर हो गए ……….   ?
जो दिखाई नहीं देतीं
और कुछ आवाजों
सुनाई नहीं देतीं।
जैसे फूल खिलते हैं
और अपनी महक छोड़ जाते हैं
वैसे ही कुछ लोग
कागज पर नहीं
दिलों पर हस्ताक्षर छोड़ जाते हैं।

प्रश्न

(क) साहब जल्दी-जल्दी काम क्यों निपटा रहे हैं
(ख) फ़ाइल की विनती पर साहब की क्या प्रतिक्रिया होती है?
(ग)  ‘हस्ताक्षर कहाँ रुकते हैं-हो ही जाते हैं।’-पंक्ति में छिपा व्यंग्य बताइए।
(घ)  दूसरी फ़ाइल ने पहली फ़ाइल को क्या समझाया?
() इस काव्यांश के भाव दो-तीन पंक्तियों में लिखिए।

4.

आधुनिकता के दौर में,
ये प्रश्न उठता है।
कोख किराये पर लें,
ये कोख बिकता है।
आधुनिकता के दौर में
ये प्रश्न उठता है …..
पवित्र बँधन है माँ का संतान से
माँ संतान को हर शहर में
और संतान माँ को
प्रश्न उठता है – – –

क्या कभी खत्म न होगा
गुमान हुआ कोख नहीं,
इक माँ है बिक रही,
ठंडी-शिलाओं में आग-सी जल रही
और धुआँ उठता है।
ये भावनाओं का व्यापार,
आधुनिकता की डोर में
कब तक बँधेगा संसार
संस्कारों को भूल किन
परंपराओं की दुहाई देता है।
आधुनिकता के दौर में
ये प्रश्न उठता है – – – –

प्रश्न

(क) आधुनिकता के दौर में क्या प्रश्न उठता है?
(ख) ‘इक माँ है बिक रही।’-भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) आज के दौर में माँ और संतान के बीच कैसा रिश्ता हो गया है?
(घ) चौथे अनुच्छेद में कौन-कौन से प्रश्न उठाए गए हैं?
() इस काव्यांश में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।

5.

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का
नाम नहीं होता है देश।
संसद, सड़कों, आयोगों का
नाम नहीं होता है देश।
देश नहीं होता है केवल
सीमाओं से घिरा मकान।
देश नहीं होता है कोई
सजी हुई ऊँची दुकान।
देश नहीं क्लब जिसमें बैठे
करते रहें सदा हम मौज।
देश नहीं होता है फ़ौज।
जहाँ प्रेम के दीपक जलते
वहीं हुआ करता है देश।

जहाँ इरादे नहीं बदलते
वहीं हुआ करता है देश।
हर दिल में अरमान मचलते,
वहीं हुआ करता है देश।
सज्जन सीना ताने चलते,
वहीं हुआ करता है देश।
देश वहीं होता जो सचमुच,
आगे बढ़ता कदम-कदम।
धर्म, जाति, सीमाएँ जिसका,
ऊँचा रखते हैं परचम।
पहले हम खुद को पहचानें,
फिर पहचानें अपना देश
एक दमकता सत्य बनेगा,
नहीं रहेगा सपना देश।

प्रश्न

(क) कवि किसे देश नहीं मानता ?
(ख) ‘पहले हम खुद को पहचाने-फिर पहचानें अपना देश’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) देश की पहचान किन-किन बातों से होती है?
(घ) देश के मस्तक को ऊँचा रखने में किन-किनका योगदान होता है ?
() प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि देशवासियों को क्या संदेश देना चाहता है?

6.

मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित !
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन।
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी,
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण।
गान अर्पित, प्राण अर्पित,
रक्त का कण-कण समर्पित!
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

कर रहा आराधना मैं आज तेरी,
एक विनती तो करो स्वीकार मेरी।
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया घनेरी।
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित !

चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो
गाँव मेरे, द्वार, घर, आँगन क्षमा दो।
देश का जयगान अधरों पर सजा है
देश का ध्वज हाथ में केवल थमा दी।
ये सुमन लो, यह चमन लो,
नीड़ का तृण-तृण समर्पित!
चाहता हूँ, देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

प्रश्न

(क) कवि देश की धरती को क्या-क्या समर्पित करता है ?
(ख) मातृभूमि का हम पर क्या ऋण है?
(ग) कवि देश की आराधना में क्या निवेदन करता है तथा क्यों?
(घ) देश के प्रति आयु का क्षण-क्षण समर्पित करने के बाद भी कवि को संतुष्टि क्यों नहीं है?
(कवि किस-किस से क्षमा माँगता है?

No competitive exam can be prepared without studying NCERT syllabus. All schools also implement this syllabus at the school level. If you liked the CBSE Hindi solution for class 12, then share it with your classmates so that more students can benefit from it.

Some Useful Links For CBSE Class 12

NCERT Mathematics Class 12 Solutions PDF

NCERT Physics Class 12 Solutions PDF

NCERT Chemistry Class 12 Solutions PDF

NCERT Hindi Class 12 Solutions PDF

NCERT English Class 12 Solutions PDF

NCERT Computer Science Class 12 Solutions PDF

Post a Comment

0 Comments